________________ विभाग] [23 नवकार स्वाध्याय कहुँ ए नवकार केतूं वखाणं / गमइ पाप संताप पांच सारप्रमाणं // 5 // जपउ० / सदा समरतां संजपई सर्वकामं / भणइ 'समयसुन्दर' भगवंतनामं // 6 // जपउ० / [89-7] उपा० श्रीसमयसुंदर रचित श्रीअरिहंतपद स्तवन / हां हो एक तिल दिलमें आवि तुं, करइ करमनउ नाश / अनन्त शक्ति छइ ताहरी, जिम वनहिं दहइ घास // एक० // 1 // हां हो नाम जपइ हियइ तुं, नहीं तउ सिद्धि न होय / साद कीजइ ऊंचइ स्वरे, पण धरइ नहीं कोय // एक० // 2 // हां हो एक तूं एक तूं दिल धरूं, नाम पण जपूं मंहि / समयसुंदर कहइ माहरइ, एक अरिहंत तूंहि // एक० // 3 //