________________ . [21 विभाग ] नमस्कार स्वाध्याय इण प्रभाव धरणिंद हुओ पायालह सामी, समलीकुमर उप्पण्ण सुरलोयह गामी . संबल कंवल बे बलद पहुता पंचमकप्पे, मूली दीधो चोर देव थयो नवकारह जप्पें; शिवकुमार मनवंछिय करे, जोगी लीयो मसांण / सोनापुरसो सीधलो, इण नवकारप्रमाण // 9 // छीकै बैठो चोर एक आकासै गामी, अहि फिट्टी हुइ फूलमाल नवकार नामी वाछरुआ चारंत वाल जल नदी प्रवाहै, वींध्यो कंटहि उयर मंत जपियो मनमा चिंत्या काज सबै सरै, ईरति परति विमास / पालित्तमूरितणी परे, विद्या सिद्ध आहास // 10 // चोर धाड संकट टलै राजावसि होवे, तित्थंकर सो होइ लाख गुण विधिसुं जोदै साइण डाइण भूत प्रेत वेताल न पुहवइ, आधि व्याधि ग्रहतणी पीड ते किमहि न होवद; कुटु जलोदर रोग सबै, नासइ एणइ मंत / ___ मयणासुंदरितणी पर, नवपयझाग करत // 11 // एक जीह इण मंत्रतणा गुण किता वखाणु, नाणहीण छउमत्थ एह गुण पार न जाणुं; जिम से–जे तित्थराउ महिमा उदयवंतउ, सयल मंत्र धुरि राज मंत्रराज जयवंतउ; तित्थंकर गणहर पणीय, चउदह पूरव सार / इण गुण अंत न को लहइ, गुण गुरुओ नदकार // 12 // अड संपय नव पय सहित इगसठ लघु अक्षर, गुरु अक्षर सत्तेव एह जाणो परमाक्षर; गुरु जिणवल्लहसूरि भगै सिवसुक्खह कारण, नरर-तिरियगइ रोग सोग बहु दुक्खनिवारण; जल थल पव्यय वनगहन, समरण हुवे इकचित्त / पंच परमेट्ठिमंत्रह तणी, सेवा देज्यो नित्त // 13 //