________________ 20] [ हिन्दी पञ्चपरमेष्ठिनमस्कारमाहात्म्य पनरभेय तिहां 'सिद्ध' 'बीयपद' जे आराहइ, रातै विद्रुमतणे वण्ण नियसोहग साहइ; राती धोती पहरि जपइ सिद्धहि पुवदिसि, सयलसिद्धि तिहां नरह होइ ततखिण सयवसि; मूलमंत्र वसीकरण, अवर सहु जग धंध / मणि मूल ओसहि करइ, बुद्धिहीण जाचंध // 4 // दक्षिणदिसि पंखडी जपै 'नमो आयरियाणं', सोवन वण्णह सीससहित उवएसह नाणं; रिद्धिसिद्धि कारणे लाभ ऊपर जे ध्यावइ, , पहिरवि पीलावत्थ तेह मनवंछिय पावइ इण झाणइ नवनिधि हुवै रोग कदे नवि होइ / गजरथ हयवर पालखी चामर सिर जोइ // 5 // नीलवण्ण 'उवझाय' सीस पाढंता पच्छिम, आराहिज्जै अंग पुन्य धारंत मणोरमः पच्छिमदिसि पंखडी कमल ऊपर सुहझाणं, जोवो परमाणंद देवगय तासु विमाणं; गुरु लघु जे लक्खै विदुर, तिहां नर बहुफल होइ / भावविहुणा जे जपे, तिहां फल सिद्ध न कोइ // 6 // .. 'सर्वसाधु' उत्तरविभाग सामला बइठ्ठा, - 'जिणधर्म' लोय पयासयंत चारित्त गुणजिट्ठा; मण-वयण-काएहिं जपै जे एकै झाणइ, . पंचवण्ण तिहां नाण झाणगुण एह प्रमाणे अनंत चोवीसी जग हुई, ए होसी अवर अनंत / आदि कोइ जाणे नही, इण नवकारह मंत // 7 // 'एसो पंचनमोकारो' पद दिशि अगनेहि, 'सव्वपावप्पणासणो' पद जप नेरेहि वायवदिस झाएह 'मंगलाणं च सव्वेसिं' 'पढमं हवइ मंगलं' इसाणपरसिं; चिहुं दिस चिहुं विदिसै, मिलिय अठदल कमल ठवेइ। जो गुरु लघु जाणी जपै, सो घणपाव खवेइ // 8 //