________________ 18] [अपभ्रंश. विसहर मंत्र गर्भित पंचपरमेष्ठिमंत्र स्तोत्रम् ( नमस्कारमाहात्म्य वर्णन ) बीजअक्खरसहित मंत सुविसिट्टा(ह)। सरह सिरिदेवभहसूरि उवइट्टा(४) // चउद पूरवतणउ अत्थु इह सारु। हियइ करि पंच परमिटि नवकारु // चउद पूरव० // 1 // धरहु परमिटि-महामंतु धीरा / लहहु जिम सयल-विसजलहि-परतीरा // चउद पूरव० // 2 // भउ हरइ वाहि-अहि-चोर-हरि-हत्थि / सुज्जि नवकारु नितु गुणउ मणि सत्थि // चउद पूरव० // 3 // आगमिक सूरिइंद जिणपह वयण / जो मुणइ सो लहइ सुहरयण // चउद पूरव० // 4 // // वयणाणि समाप्तानि // ( नमस्कारमाहात्म्य वर्णन ) बीजाक्षरोए सहित सुविशिष्ट मंत्र (विषहर मंत्र ) जे श्री देवभद्रसूरिए * मने उपदेशेल छे. तेर्नु स्मरण करो. - जे चौद पूर्व गो सारभूत अर्थ छे, ते पंच परमेष्ठि नमस्वारने हृदयमा धारण करीने उपर कहेल विषहर मंत्रनुं स्मरण करो // 1 // ___ हे धोर पुरुषो ! परिमेष्ठि महामंत्रने धारण करो, जेथी सकल विषजलधि (संसार )ना परतीरने तमे पामो // 2 // ___ नवकार व्याधि, सर्प, चोर, सींह, हाथीना भयने हरे छे, तेथी शुद्ध नवकार शस्त (पवित्र ) मन वडे नित्य गणो // 3 // ___जे आगमिक (आगम गच्छना ) सूरिओमां इंद्र समान श्री जिनप्रभसरिना वचनने सांभळे छे, ते सुखरूप रत्न पामे छे // 4 // (प्रति-परिचय) आ स्तोत्र नी प्रति संबंधे परिचय 85-3 मुजब छ / .. ग्रंथकारे अहीं पोताना गुरुर्नु नाम [येल छे,