________________ नमस्कार स्वाध्याय 7 विभाग ] श्री विमलबोध करइ य उवझाय / विहिय विहिपुव्व पंचविह सज्झाय // ॐ उवझाय० // 4 // __ ( साघुपद स्मरण ) पंच महव्वय मेरुगिरिसरिस / धरई जे सील लीइ दुद्धरिस // अरिरि खरतर संजम रह धुर धवल / मुणिवसह नमह आगमबिहिकुसल // अरिरि खर० // 1 // साहु अर्ह(हैं) महामंतु नितु ध्यायइ / दोसि बायालि सुद्धन्नु जे चाहई // अरिरि खर० // 2 // मलमलिणगत्त चारित्त सुपवित्त / पणसमिति समित तिगुत्त अपमत्त // अरिरि खर० // 3 // कम्म अहि अट्ठ कुल दप्पु जे नासई। पासविसहरमंतु हियइ अधिवासई // अरिरि खर० // 4 // विधिपूर्वक पांच प्रकारनो स्वाध्याय करीने जेओ विमलबोध आपे छे, ( साघु-वर्णन ) जेओ मेरुपर्वत जेवा पांच महाव्रत धारण करे छे, दुर्धर्ष (दुःखे करीने पाळी शकाय एवा) शीलने ले छे ( स्वीकारे छे ) - अरे रे ! संयम रथनी खरतर (कठोर, कष्टदायक) धाल धुरा (धुसरी)ने वहे छे, ते आगमविधिमां कुशल एवा मुनिवृषभोने (श्रेष्ठ मुनिओने ) तमे नमस्कार करो // 1 // - जेओ ॐ हाँ श्री अर्ह नमः * ए महामंत्रनुं ध्यान करे छे, बेतालीस दोषथी रहित शुद्ध अन्न जेओ चाहे छे (गवेषे छे ) // 2 // जेओ मेलथी मलिन शरीरवाळा हावा छतां चारित्र यो अत्यंत पवित्र छे, पांच समितिथी समित, त्रण गुप्तिथी गुप्त अने अप्रमत्त छे // 3 // जेओ कर्मरूप अहि-नागना आठ कुलोना दर्पनो नाश करे छे, जेओ 'पासविसहर' मंत्र हृदयमा अधिवासित (भावित ) करे छे // 4 // x अहींथी शरु थतुं वाक्यार्थ आ पछी गाथाओ 2, 3 ओ 4 ना अंते उमेर। . * आ मंत्राक्षरो उपाध्याय पदनी शरुआतथी अहीं सुधी गूंला छे.