________________ 16 ] विसहरमंत्र गर्भित पंचपरमेष्ठिमंत्र स्तोत्रम् [ अपभ्रंश चउदपूरवतणा रहस्य जे जाणई। सयल अतिसय सुत्त मंत वक्खाणइं॥ बपुरि विस० // 2 // नरयगइ कूव निवडंतु जणु रक्खई। सुयनयणि उड अह लोअठिइ पिक्खई // बपुरि विस० // 3 // होति छत्तीस गणहर गुणिहिं सोहई / भवियपंकज देसणकिरणि पडिबोहइ // बपुरि विस० // 4 // ( उपाध्याय पद स्मरण ) सू(सु)यजलहिपारगय बारस अंग / मुणिपवर जे पढावई जियाणंग // 9 * उवझाय गारुडिय अणुसरहु / अंतर बाहिर विसपसरु जिम जरहु // ॐ उवझाय० // 1 // धम्मदेसणकरणनिउण गुणरयण / रोहणाचलसरिस निम्मलचरण // उवझाय० // 2 // ह्रीँ असम उवसम अमयरससित्त / कम्मविसु हणई जे पायडिय तत्त // ॐ उवझाय० // 3 // जेओ (आचार्यो) चौद पूर्वनां रहस्यो जाणे छे, पोतानी पासे रहेल-सकल अतिशयो (लब्धिओथी) सहित जेओ सूत्रो अने मंत्रोनुं व्याख्यान करे छे. 2 ___जेओ नरकगतिरूप कूवामां पडता जीवोनुं रक्षण करे छे, जेओ श्रुतनयन वडे ऊर्ध्व, अधोलोकनी स्थिति जूए छे. 3 ___ जेओ गणधरना (आचार्यना) छत्रोस गुणोथी शोभे छे, जेओ भव्य जीवरूप कमळोने देशनारूप किरणो वडे प्रतिबोधित करे छे. 4 ( उपाध्याय-माहात्म्य ) जेओ श्रुतसमुद्रना पारने पामेला छे, मुनिओमां प्रवर छे, अनंग (कामदेव)ने जेओए जीतेल छे, जे बार अंग भणावे छे, ते गारुडी समान उपाध्यायने अनुसरो, जेथो अंतर-बहारनो विषनो फेलावो नाश पामे. 1 धर्म समजाववामां अने करवामां (आचरवा मां) निपुण, गुणरत्नो माटे रोहणगिरि समान, निर्मळ चारित्रवाळा. 2 जेओ निरूपम उपशमरूप अमृतरसथो सींचायेला छे. जेभो तत्त्वने प्रगट करीने कर्मविषने हणे छे. 3 * मूलमां ॐ वगेरे मंत्राक्षरो गूंथेला छे. अहोंथो शरु थतुं वाक्यार्थ आ पछीनी गाथाओ - 2, 3 अने 4 साथे जोडवू.