________________ विभाग ] नमस्कार स्वाध्याय (सिद्ध पद स्मरण ) . पनरसि भेदि भव लहि जगु तारई / नाममंतेण जे पावविसु वारई // जज्ज(? स्स) चतुर्दश भुवन नत्थिवि सुहंस / स सिद्ध मणि धरहु तुम्हि मुत्तिअवयंस // जज्ज चतु० // 1 // अणंत देसण विरिय सिद्ध सुहु माणइं। विमलकेवलनयणि भुवणि परियाणइं // जज्ज चतु० // 2 // धम्मजलि पावु मलु जेहिं पक्खालिउ / सुक्कज्झाणानलिण कम्मवणु जालिउ // जज्ज चतु० // 3 // जाहं नहु जम्म जर मरणु भय रोगा। लोह मय मोह नहु सोग वियोगा // जज्ज चतु० // 4 // ( आचार्य पद स्मरण ) सुमरि जिय ताहं आयरियहं पाय / जाह परभावि विसु नासए ठाय // वैपुरि * विसहर फुलिंग मंतवरनाहो / सुमरिउ सूरिवरु सिरिभद्दबाहो // बपुरि विस० // 1 // ( सिद्ध वर्णन ) छेल्ला भवमां पंदर भेदो लहीने (पंदर भेद होइने) जेओ जगतने तारे छे, जेओ नाममंत्रथी (नवकारथी) पापरूप झेरनु वारण करे छे, जेनां (अनंत) सुखनो (एक) अंश पण चौदे भुवनमा नथी ते मुक्तिना मुकुट सिद्ध (भगवंत)ने तमे मनमां घरो. 1 सिद्ध भगवंत अनंत दर्शन, वीर्य अने सुख माणे छे, केवलज्ञानरूप विमल नयनथी भुवनोने संपूर्ण जाणे छे. 2 जेओए (सिद्धोए) धर्मजल बडे पापमल प्रक्षालित करेल छे, शुक्लध्यानरूप अग्नि वडे कर्मवन बाळेल छे. 3 जेओने जन्म, जरा, मरण, भय, लोभ, मद, मोह, रोग, शोक अने वियोग नथो. 4 ( आचार्य माहात्म्य ) हे जीव ! ते आचार्योना चरणनु स्मरण करो, जेओना प्रभावे विष नाश पाभे छे, रे रांक जीव ! *सूरिवर श्री भद्रबाहुए प्ररूपेल (अने) मंत्रोमां श्रेष्ठमां श्रेष्ठ (एवा) विसहर-फुलिंग मंत्र- स्मरण कर. 1 1 अहींथी शरु थतुं अर्धं वाक्य आ पछीनी गाथाओ 2, 3 अने 4 ना अंते जोडq. * 'बपुरि' बापडा, रांकना अर्थमां छे. अहींथी शरु थतुं अर्ध वाक्य आ पछीनी 2, 3 अने 4 गाथाओ साथे जोडीने वांचq. .