________________ [86-4] आगमिक श्रीजिनप्रभसूरिरचितम् विसहरमंत्र गभिंत पंचपरमेष्ठिमंत्र स्तोत्रम् मोहपन्नगगरलि तिहुयणु घारिउ / जिणहिं सम्मत्तु रसायणु चारिउ // अरिरि परमिटि वरमंतु मणि धरहु / विसयमहाविसि जेम नवि मरहु // अरिरि पर० // 1 // ( अरिहंत पदस्मरण ) ॐ सिद्धि श्रीसि(रि)द्धि परमगुरु कहइ / सयल विसहरणु इहु जसु हियइ रहइ // अरिरि पर० // 2 // थावर जंगम अडार विस हणए / तसु अजरु अमरु पहु जिणप्रभु कुणए // अरिरि पर० // 3 // मिच्छ विसहर गरुडु देउ अरिहंतु / सयलविस उपविसहं एहु मूलमंतु // अरिरि पर० // 4 // त्रिजगहितु अट्ठदसदोसिहि रहितु / हाइ विसु सुमरियउ अतिसयसहितु // अरिरि पर // 5 // अनुवाद अरिहंत माहात्म्य. मोहरूप सर्पना झेर (ना फेलावा)थी त्रणे भुवनो बेचेन छे, तेना बचाव माटे जेओए (जीवोने) सम्यक् व रसायण खत्रडाव्युं, ते परमेष्ठिओना श्रेष्ठ मंत्रो (नवकारने) अरे जीवो ! तमे मनमा धरो, जेथी विषयरूप महाझेरथी तमे न मरो. 1 सकल विषने हरनार आ नवकार जेना हृदयमा रहे छे, तेने मोक्ष अने सांसारिक लक्ष्मीनी सिद्धि (प्राप्ति) थाय छे, एम परमगुरु (श्री जिनेंद्र परमात्मा) कहे छे. 2 ___ तेना (नवकार गणनारना) स्थावर के जंगम अढारे प्रकारनां विष नाश पामे छे. तेने (नवकार गणनारने) श्री जिनेंद्र भावान अजर, अमर प्रमु बनावे छे. 3 अरिहंत देव मिथ्यात्वरूप सर्प माटे गरुड जेवा छे, आ मूलमंत्र (नवकार) बधा झेरोने बेसाडनार (शमावनार) छे. अरिहंत देव त्रगे जगतनु हित करनार अने अढार दोपथी रहित छे. जो तेओर्नु अतिशयोथी सहित स्मरण करवामां आवे तो तेओ विष हरे छे. 5