________________ विभाग ] नमस्कार स्वाध्याय [19 नवकारपभाविं वग्ध सीह, लंघति न अदु दिन्न लीह / नवकारबलिण सायरु तरंति, संगाम दुग्गु नर नित्थरंति // 14 // नवकारिं थावर जंगमाई, नासंति नरह विसमई विसाई। नवकारिहिं जलणु वि जलु नराहं, बहुमाण भत्तिभर निब्भराहं // 15 // नवकारिहिं वइरई उवसमंति, गहगाम भूअ अणुकूल हुंति / नवकारिहिं काई न काई जणे, सुंदरु संपजइ सयलु भवे (?) // 16 // नवकारिहिं सुहु विज्जाहराह, गंधव्व सिद्ध तह किंनराहं / नवकारिहिं दाणव वंतराहं, गच्छंति दियह हरसिय-प्रणाहं // 17 // नवकारिहिं चंदाइच्च दोवि, सुहु भुंजई सुंदरु देवलोइ / नवकारिहिं तारा रिद्धिमंत, अंबरतलि दीसहिं जगजगंत // 18 // नवकारिहिं लब्भइ सुरविमाण, मणिरयणविणिम्मिय अप्पमाण / नवकारिहिं सुरगण करहिं सेव, जति वयणु देव देव // 19 // नवकारिहिं पीणपयोहराउ, न मुयंति पासु वर अच्छराउ / नवकारिहिं नर अहमिंद हुंति,:पंचोतेर (चणु) सोखइं अणुहवंति // 20 // - नवकारना प्रभाव वाघ, सिंह ( वगेरे ) दीधेली रेखा-हदने ओलंगता नथी, नवकारना बलवाला पुरुषो सागर तरी जाय छे अथवा संग्राम, अटवी (वगेरे)नो निस्तार (पार) पामे छे. 14 . नवकारथी मनुष्योने (चढेला) स्थावर * जंगम विषम (खराब) विषो (झेर) नाश पामे छे, नवकारथी बहुमान अने अत्यंत भक्तिथी निर्भर (भरेला) मनुष्योने माटे अग्नि पण पाणी थइ जाय छे. 15 नवकारथी वेर (शत्रुभाव) उपशमे छे, नवकारथी ग्रहोनो समूह अने भूतो अनुकूल थाय छे, नवकारथी सर्वभवोमां (संसारमा) कई कई सुंदर वस्तुओ लोकमां प्राप्त थती नथी ? 16 . ___ नवकारथी विद्याधरो, गंधर्वो सिद्धो + तथा किंनरोनां सुखो प्राप्त थाय छे. नवकारथी दानवो (असुरो), व्यंतरोना दिवसो हर्षवाळा मनथी पसार थाय छे. 17 नवकारथी चंद्र अने सूर्य x बंने देवलोकमां सुख भोगवे छे, नवकारथी रिद्धिवाला ताराओ (ताराना देवो) आकाशतलमां झगझगाट करता देखाय छे. 18 नकारथी मणोओ अने रत्नोथी बनाबेलं मोटुं देवविमान मळे छे. नवकारथी देवगणो सेवा करे छे अने 'जय देव देव' एवां वचनोथी जयजयकार करे छे. 19 ____नवकारथी पुष्ट स्तनवाली श्रेष्ठ अप्सराओ क्षणवार पण दूर थती नथी. नवकारथी मनुष्यो अहमिंद्र थाय छे अने पांच अनुत्तरविमानना सुखो अनुभवे छे. 20 * स्थावर-खोराकमां अपाएल झेर. जंगम-साप वगेरेना करडवाथी चढेल झेर. + विद्यासिद्ध वगेरे. x आ बने इंद्रो छे.