________________ विभाग ] नमस्कार स्वाध्याय [85-3] श्री जिनप्रभसूरिरचित नवकारफलवर्णनम् / पणमेवि पाय परमेसराण, उसभाइ सयल तित्थेसराण / पणमउ पक्खालियपावमल, जेण निसुणहु जिणनवकारफलु // 1 // नवकार पभावि निसुणि मित्त !, जे झायहिं धंमह तणिय चिंति / ते दुक्खु न पावहिं अन्नभवि, जहिं जाय तहिं सुहु लहहिं जणि // 2 // नवकारिं लंघहिं आवयाउ, नवकारिं पावहिं संपयाउ / नवकारिं पुन्नई उभूयंति, नवकारिं पावई खयह जंति // 3 // नवकारिहिं वज्ज विजयढक्क, नवकारिहिं को भंजइ मडक्क / नवारिं नवनिहि संपडंति, छक्खंड वसुंधरि ते लहंति // 4 // नवकारिं चउदह रयण होंति नवकारि गुणसय वित्थरंति / नवकारु सुमंगल धन्नु पुन्नु, नवकारिं तुल्ल नहि कांइ अन्नु // 5 // नवकारई राणा पुहइपालु, वर रूव वन गुणसय विसालु / नवकारिं वरगयगामिणीउ, संपज्जहिं पवरउ कामिणीउ // 6 // श्री ऋषभ वगेरे सकल तीर्थंकरोना चरणने प्रणाम करीने पापमलने प्रक्षालित करनार ( अमे नवकारनुं फळ कहीए छीए) (तमे पण ) प्रणाम करो अने जिननमस्कारनुं फळ सांभळो. 1 / हे मित्र ! तुं नवकारनो प्रभाव सांभळ. जेओ चित्तमां सदा (?) नवकारनुं ध्यान करे छे, तेओ अन्य भवमां दुःख पामता नथी. ज्यां जाय त्यां लोकमां सुख पामे छे. 2 नवकारथी आपत्तिओ ओळंगी जाय छे अने नवकारथी संपत्तिओ पामे छे, नवकारथी पुण्यो उद्भवे छे, नवकारथी पापो क्षय पामे छे. 3 नवकारथी विजयनगारां वागे छे, नवकारथी ( शत्रुनो ) गर्व भांगी जाय छे, नवकारथी ( तेओ) नवनिधि पामे छे. नवकारथी तेओ छ खंड पृथ्वी मेळवे छे. 4 नवकारथी चौद रत्नो थाय ( मळे ) छे. नवकारथी सेंकडो गुण विस्तार पामे छे. नवकारथी श्रेष्ठ मंगल, धन अने पुण्य थाय छे, नवकार जेवू बीजुं कांई नथी. 5. नवकारथी पृथ्वोपालक-राजा थाय छे, नवकारथी श्रेष्ठ रूप, उच्च वर्ण ( क्षत्रियादि ) तथा विशाल सेंकडो गुणो थाय छे, नवकारथी प्रवर उत्तम गजगामिनी कामिनीओ (स्त्रीओ) मळे छे. 6