________________ नवकाररास [ अपभ्रंश गुरु गिरि रनि पडिउ मणि थारइ भवसायरु तमु लीलाइ तारइ / हरि-करि-विसहर-साइणि-सीह-रिउदल तासु न लंघहिं लीह // 18 // जो नर झायइ ए परमक्खर दूरिहि नासहिं तसु सभि तकर / पंच पयइ जो अणुदिणु झायइ लछि सयंवर तमु घरि आवइ // 19 // विहिसउ उजमइ जो नवकारु दुत्तर हेला तरइ संसारु / जो नरु सुमरइ अट्टसठि अश्खर तासु सुरासुर वट्टहि किंकर // 20 // पभणिउ यहू नवकारह रासु सयल मंगल गुणगणणआवासु / जो नरु अणुदिणु नियमणि झायइ सिवपुर लच्छि पवर सो पावह // 21 // ॥इति नवकाररासः समाप्तः // नवकार मोटा पर्वत पर अथवा अरण्यमां भूला पडेलाने ठारे छे ( मनमां शांति आपे छे ) भवसागरथी लीला वडे तारे छे, हरि (?) हाथी, सर्प, शाकिनी, सिंह अने शत्रुदळ तेनी रेखाने (मर्यादाने ) ओळंगता नथी // 18 // जे माणस आ (नवकारना) परम अक्षरोनुं ध्यान करे छे, तेनाथी सर्व चोरो दूर भागे छ / जे रोज ( नवकारनां) पांच पदोनुं ध्यान करे छे, तेना घरे लक्ष्मी स्वयंवरा थईने ( पोतानी मेळे ) आवे छे // 19 // . जे नवकारमा विधिसहित प्रयत्नशील (उद्यम करे) छे, ते दुस्तर संसारने सुखेथी शीघ्र तरी जाय छे-जे माणस 68 अक्षरनुं स्मरण करे छे, तेना देवताओ-असुरो किंकर थाय छे // 20 // ___ सकल मंगलो अने गुणगणोना आवासरूप आ नवकाररास अमे (कर्ताए ) कह्यो छे, जे एनुं रोज पोताना मनमा ध्यान करे छे, ते श्रेष्ठ शिवपुर ( मोक्ष ) लक्ष्मी पामे छे // 21 //