________________ | 7 विभाग ] नमस्कार स्वाध्याय तणु चइ पुलिंदु सुऊपनउं महियलि नरवइपुत्तु / त जाइसरणि निय मउ मणिउ मणिवंछिउं तिणि पत्तु // 13 // पावनिरंत गयणिहिं भमत समली वीधिय बाणि / त नवकारह फलि साहु इय नरवइधू सुहखाणि // 14 // नरभवि संपइ जे वरिय पत्त जि अमरविमाणी / त सिद्धि रमणि जे नर रमहिं फल नवकारह जाणि // 15 // ( उवणि ) निसुणि संगतु संगतु पुरिसु नामेण कोथुविउ गामि थिउ, मुणिहिं वयणि नवकारु झायइ, बीयभविहिं हुउ रयणिसिहो रायरिद्धि अइ पवर पावइ / भुंजेविणु सुहं रज्जसिरि केवलनाण लहेइ, जो परमिट्ठि मणि सरइ मणवंछिउ तसु होइ // 16 // ( धत्ता ) जिण नवकारु जु नरु निचु(च्चु) झायइ सो आवइं कइ आवि न पावइ / दुट्ठ कुट्ठ गह भउ तसु नासइ वाहि जलणु जल दुरिहिता सइ // 17 // 32 (नवकारना प्रमावे ) भील मरण पछी पृथ्वीतलने विषे राजपुत्र थयो, राजपुत्र-राजपुत्रीए (भील-भीलडीना जीवे ) जातिस्मरण ज्ञान वडे पोतपोतानो भव जाण्यो / नवकारथी बन्ने मनवंछित पाम्यां // 13 // पापमां निरत ( मग्न ) अने आकाशमां भमती समळी पारधीना बाणथी वींधाइ, साधुए नवकार संभळाव्यो, तेना फळरूपे ते राजपुत्री थई, सुखी थई // 14 // ___ नरभवमा जेओ संपत्तिने वर्या छे, ( देवगतिमां ) जेओ देवविमान पामे छे अथवा ( मोक्ष गतिमां) जेओ सिद्धि रमणीनी साथे रमे छे / ते बधुं नवकारनुं फळ जाणो // 15 // ___ सांभळो, कोइक संगत (?) नामनो पुरुष (खेडुत ) गामडामां थयो, ते मुनिवचने नवकारर्नु ध्यान करतो हतो, ते बीजा भवमां रजनीसिंह (रत्नसिंह ) थयो, अति श्रेष्ठ राजरिद्धि पाम्यो, सुख अने राज्यलक्ष्मी भोगवी ते केवलज्ञान पाम्यो. जे परमेष्ठिओनुं मनमा स्मरण करे छे तेनां मनवंछित (पूरां) थाय छे // 16 // ___जिननमस्कार- जे नित्य ध्यान करे छे, ते कदापि आपत्ति पामतो नथी, दुष्ट कोढ रोग, हाथी ( वगेरेनो ) तेनो भय नाश पामे छे अने रोग आग, जल ( पूर वगेरेनो मय ) पण तेनाथी दूर भागे छे // 17 //