________________ सेठियाजैनप्रन्यमाला 63 जिस के क्रुद्ध होने पर न भय है और न प्रसन्न होने पर धनादि का लाभ है तथा न दण्ड और अनुग्रह (दया)हो सकता है उसके रुष्ट होने से क्या होगा ? . 64 विष हीन सर्प को भी अपना फण बढ़ाना चाहिए। विष हो या न हो, आडम्बर भय जनक होता है / इसी प्रकार क्षमावान् को भी बनावटी डर दिखाना पड़ता है , अन्यथा उसे व्यवहार में अनेक कष्टों का सामना करना पड़ता है। 65 दरिद्रता भी धीरता से शोभती है, स्वच्छता से कुवस्त्र भी अच्छा जान पड़ता है, बुरा अन्न भी उष्ण होने से अच्छा लगता है, कुरूप भी सुशीलपने से शोभा पाता है / 66 धनहीन, हीन नहीं गिनाजाता; किन्तु जो विद्यारूपी रत्न से हीन है, वह सब वस्तुओं से हीन है। 67 दृष्टि से शोधकर पांव रखना चाहिए, बस्त्र से छानकर पानी पीना चाहिए, शास्त्र के अनुसार शुद्ध वचन बोलना चाहिए तथा मन से सोचकर काम करना चाहिए। 68 सुख भोगते हुए विद्याभ्यास नहीं हो सकता, इसलिए विद्याभ्यास करते समय मुख की परवाह न करे; क्योंकि सुखार्थी को विद्या वैसे प्राप्त होगी और विद्यार्थी को सुख कैसे होगा? / 66 कवि क्या नहीं देखते,स्त्रियां क्या नहीं कर सकती,कौवे क्या नहीं खाते।