________________ नीति-शिक्षा-संग्रह 55 संसार में विद्वान ही प्रशंसा पाता है, विद्वान सर्वत्र आदर पाता है। विद्या से सब कुछ मिलता है। विद्या सर्वत्र पूजी जाती है। 56 सौन्दर्य और यौवन से विभूषित तथा प्रशंसनीय कुल में उत्पन्न हुए मनुष्य भी विद्या विना शोभा नहीं पाते, जैसे गन्ध विना टेसू का फूल / 57 मांस भक्षण करने वाला, मदिरा पान करने वाला और निरक्षर-मूर्ख इन पुरुषाकार पशुओं के भार से पृथ्वी सदा पीड़ित रहती है। 58 यदि मुक्ति चाहते हो तो विषयों को विष के समान छोड़ दो तथा क्षमा सरलता दया पवित्रता सत्य त्याग तप को अमृत की नाई पियो / 56 जो नराधम आपस में मर्म- भेदी कटु वचन बोलते हैं, वे निश्चय से नष्ट हो जाते हैं, जैसे घी में पड़ कर मक्खी / 60 सब औषधियों में गडूची उत्तम है, सब सुखों में भोजन प्रधान है, सब इन्द्रियों में आंख प्रधान है और समस्त शरीर में मस्तक श्रेष्ठ है। 61 विद्यार्थी,सेवक,पथिक,भूख से पीड़ित. भयभीत, भंडारी और द्वारपाल, इन सातों को सोते से जगा देना चाहिए / 62 सांप, राजा, व्यावू, बालक, दूसरे का कुत्ता, बरे (टां टिण) और मूर्ख, इन सातों को सोते से काहिए।