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मोदकमां नाखेला रत्ननो योग कर्मवादी पुरुषने प्राप्त थयो. अष्ट सर्व हकीकत राजाना जाणवामां आवी त्यारे ते चमत्कार पाम्पो, अने ते बन्नेने छोड़ी मूक्या. आ प्रमाणे कर्मवादी अने उद्यमवादी बने विवादरहित थइने अत्यंत सुखी थया
माटे हे बहेन ! समग्र कार्यने साधनारुं कर्मज छे, एम तं पण अंगीकार कर, त्रण जगत्ना समग्र जीवो जेने आधीन छे एवं कर्म प्रधान छे.” ते सांभळीने प्रत्युत्तर देवामां असमर्थ परंतु छळकपटथी बोलवाना स्वभाववाळी मोटी बहेन बोली के - " जो सर्व कर्मनाज प्रसाद छे, तो तुंज बोल के तुं कोना प्रसादथी ( कृपाथी ) सुखीछे, अथबा मान पामे छे ? तथा आ समग्र लोको कोनी कृपाथी सुखीया छे ? " त्यारे नानी बहेन बोली के - " अंतःकरणमां कूडकपट राखीने केवळ मुखथी मीढुं मीटुं बोलवाथी शुं फळ छे ? सर्वने पोतपोताना कर्मना प्रभावथीज सुख दुःख प्राप्त थाय छे. जीवोने पुण्यनो उदय प्राप्त थाय त्यारे राजा तेमनापर प्रसन्न थाय छे; अने सर्व इष्ट वस्तु आपे छे. तथा पापनो उदय थाय त्यारे यमराजनी पेठे ते रोष पामे छे अने सर्व वस्तुनुं हरण पण करे छे. कां छे के - ' सर्व जीवो पूर्वे करेला कर्मनुंज विशेषे करीने फळ पामे छे. अपराधमां अथवा गुणमा (लाभमां के हानियां ) बीजो तो निमित्तमात्रज छे.' आ प्रमाणे नानी कुमारीनुं वचन सांभळीने मनमां क्रोध पामेलो राजा बोल्यो के - " हे दुष्टे ! हे दु:पंडिते ! तुं तारा कर्मनुं फळ तथा तारा वचननुं फळ तत्काळ जो. " एम कहीने राजाए पोताना सेवकनो