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उपदेशमालाविशेषवृत्तिः
चंदनबालापारणासन्धिः ।
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सामिहि पुव्वलक्खु पजाऊ, ते चउरासी पुणु सव्वाऊ ॥ ७७ ॥ दससहसिहि साहुहु सह मह बाहुहूं अदावइ विच्छिन्नरिणु । IN माहाइम तेरसि निस्सम सुहरसि गउ निध्वाणि जुगाइजिणु ॥ ७८ ॥ इति ऋषभपारणकसन्धिः॥
एतावदेव प्रस्तुतोपयोगीति नाधिकमत्रोपनिबद्धं, तदर्थिना तु तस्य चरितमन्वेषणीयम् । श्रीमहावीरसन्धावप्येमेवोपनिभन्स्यते यथा
तिसलादेविकुक्खिकलहंसह, खत्तियनायवंसअवयंसह । छिन्नसुवन्नसुवन्नसरीरह, पारणसंधि भणउं जिणवीरह ॥ १॥ दाहिणभरहखंडि संजायउ, खत्तियकुंडु गामु विस्खायउ । तुंगतारपायारविराइउ, आसि नयरु न परेहिं पराइउ ॥ २॥ जहिं जिणमंदिरमंडविसोहहिं, मणिपुत्तलियपंति मणुखोहहिं । नगरनिरिक्खिणकउतिगिपत्ती, अणिमिसअच्छर ने तुरंती ॥३॥ तं पसिद्धसिद्धत्थह नंदणु, नामि नंदिवद्धणु जसवद्धणु । अगणियगुणगणसिढि पसिद्धउ, धणकणकंचणकोडिसमिद्धउ ॥ ४॥ उन्भडभडवारणु अनयनिवारणु जसरंजियनीसेससुरु । चारहडि पहाणउ अइबलु राणउ पालइ कुंडग्गामपुरु ॥५॥ तासु सहोयरु आसि कणिटुउ, वद्धमाणु नामिण गुणजेट्ठउ । सुरगिरि सुरअसुरिहि कयमज्जणु जणसंजणियकम्मसम्मज्जणु ॥ ६॥ तेण नंदिवद्धणु आपुच्छिउ, निममु पुन्नु मह संपइ निच्छिउ । जं मायापियरिहि पहवंतिहि, नाहं समणु होमि जीवंतिहि ॥७॥ पढमु माइ परलोइ पराई, पुणु संपइ ताओवि जसवाई। भाय ! करेहि चित्तु ता सजउं, अणुजाणह पव्वज पव्वजउं ॥८॥ वीरह वयणु सुणिवि एयारिसु, बजघाओ सिरि निवडइ जारिसु । वाहनीरनीरंधकयच्छउ, भणइ नंदिवद्धणु कयनिच्छउ ॥ ९॥ पंचत्तहं पत्तउ हर्ष परिचत्तउ ताई भाय ! कित्तिय दियह । संपइ १पइ मुक्कउ जइ घरि थक्कउ ता हियडउ फुट्टिसइ मह ॥ १० ॥ विलवंतु नंदिवद्धणु निएइ, पुणु मणु न सामि कोमलु करेइ । मन्नाविउ वंसवरेहिं ताव, पडिखाविउ वच्छर दोन्नि जाव ॥ ११ ॥ तो ताहं वयणि जुगदीहबाहु घरवासि वसइ पहु भावसाहु । कयवंभु अदभु असंगसोगु, परिहरिय सव्वसावजजोगु ॥१२॥ उवसरिय झत्ति लोगंतिएहिं
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॥३८॥