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समय
ऋषभपारण
उपदेशमालाविशेषवृत्तिः
| कसन्धिः ।
સમુદ
॥३७॥
त्व
Fas रयणि सुवन्निहिं अरु पणवन्नहिं पुप्फिहि पयरु पवंचियउ । गुडी उच्छलिय' दुंदुहि वज्जिय जयइ सुदाणु परोसियउ ॥ ६२ ।। | उप्पाइय देविहिं पंचदिव्व घरि कुमरहिं कुसलमहानिहिव्व । जुवराइ अउरु नरराइ सारु, आरद्धउ वद्धावणपयारु ॥ ६३ ॥ पहिरेवि चिर नवरंगरत्त, पविसंति तरुणि गहियक्खवत्त । सीमंति ताहं कुंकुमथबुक्क, फलबीडां दिज्जहिं कयचमक ॥ ६४ ॥ वजंति तूर अइतारतारु नचंति नारि अइफारचारु । विजयावलि पयडहिं भूरिभट्ट, अरु उदओ उदओ जोगियह थट्ट ॥ ६५ ॥ तह पाउललीलावइ सलीलु, गाए वि कुमारह सच्चुसीलु । वद्धारवि चंदणु भालवट्टि, नियरंगि प्रयट्टहिं चारुभ(न)ट्टि ॥ ६६ ।। नवपल्लवसोभिय तोरणउब्भिय, गयउरि घरघरबारि जणि । वरदाणई दिजहिं मग्गछडिजहिं, झयझबालझलहलहिं खणि ।। ६७ ।। परमेसरु पारिवि गओ विहारि, पुरि नयरि देसि दुहदुरियहारि । आवेवि कुमरु पयडियपमोय, ते पुच्छहिं ताव स सयललोय ॥ ६८ ॥ पारणविहाणु पई किंव कुमार !, जाणियउ जिणह कयसुकयसार ! । सेयंसु पयासइ पुव्वभव जिव जाइ-सरणि जाणियउ सव्व ।। ६९ ॥ पुंडरिगिणिनयरिहिं रिसहजिवु, सिरिवइरनाभु संसारभीउ । जिणपासि आसि सूरिप्पहाणु, तित्थयरकम्मकरणेक्कताणु ॥ ७० ॥ हउं सारहि तिणि सहुं गहियदिक्खु, सिक्खियअक्खंड दुपक्खसिक्खु । मई जाणिउ मुणिहिं अकप्पु कप्पु, तुब्भवि कहेमि तं जण अणप्पु ॥ ७१ ॥ जाणिवि सेयंसह पासि सुवंसह, जणु अखंडभिक्खाए विहि । तो जिणवरसीसह चरणगुणीसह, मिक्खपयट्टइ सोक्खनिहि ॥ ७२ ॥ विहरिवि वरिससहसु छउमत्थउ, केवलि जायइ जाउ कयत्थउ । बहुलेकारसीफग्गुणमासह, पुरिमतालि जिणुवासि विलासह ॥ ७३ ॥ समवसरणु सक्केहिं कराविउ, तहिं जिव चउविहु संघु सुट्ठाविउ । भरहह पंचपुत्तसय दिक्खिय, तह नत्तुय सयसत्त सुसिक्खिय ॥ ७४ ॥ जेवि हुया वणतावस हुँता, ते सव्वेवि साहु संवुत्ता। चउरासी गणहरह सु(मु)हाणइ, भरपुत्तु पुंडरिउ महामइ ॥७५।। चउरासी जइ सहसजगुत्तम, तिन्नि लक्ख साहुणी सुसंजम । भरहु पहिल्लउ सावगु सुप्परि, गोमुहु जक्खु देवि चक्केसरि ॥७६।। कमि कमि अढाणवइ बाहुबलि, सामिपुत्त संजाया केवलि ।
१ उच्चलिय B । २ वीडय B.।
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॥३७॥