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उपदेशमाला
विशेषवृत्तिः ॥ ३६ ॥
लेट
व्याजा
नगर
वर्ष
पक्ष्या
साहु साहु संजाय, अह सव्वट्टविमाणि परायउ || ४६ ॥ चविय कुमारु जाउ संपइ हउ, वइरसेण तित्थंकरु सुमरउ । तारिसु वेसविसेसु वहंत, रिसहु वि तित्थनाहु पहु पत्तउ ॥ ४७ ॥ निरसणु निम्मच्छरु विहरिउ वच्छरु, विहरावि केणावि हु | जइ मज्जु घरंगणि जगचिंतामणि, एइ त विहरावेमि पहु, ॥ ४८ ॥ चिंतंतह एरिस वारिपतु, सेयंसह सामिउ जगि पवित्तु । तो हरिसि माइ न कुमारु अंगि, नो घरि न बारि नहु दुग्गि दूंग ॥ ४९ ॥ चिंता सुट्टहउ अज्ज जाउ, हउं अज्जु तिलोक्कह एक्कुराउ | मई पत्तु खारु संसारपारु, उग्घाडिउ निरु निव्वुइदुवारु ।। ५० ।। मई भग्ग अणगह आणगाढ, उप्पाडिय कालकराल - दाढ | मई दिन्नु नरयकूयह पिहाणु, उक्खणिउ त सासयसुहनिहाणु ॥ ५१ ॥ पडिलाहउं अज्जु जएक्कनाहु, लहु होमि हिययनिव्वुइ साहु | मह अप्पसु रे वरभूरिभक्ख, घयखीरिखंडखज्जूरदक्ख ||५२ || एत्थंतरि पत्तउ कलसनिहित्तउ, महुरु सुसीयलु खोयरसु । ढोणि तव करिहि करेविणु, कुमरुप्पाडइ हरिसवसु ॥ ५३ ॥ पाणि पियामहु पाणि पसारइ, अविवरपवरंजलि वित्थारइ । सिरि सेयंसु कुमारु पलोयइ, तहिं बहुनवरसकुंभ विरोयइ ॥ ५४ ॥ सहइ सधार जेव गिरिहुतउ, गंगपवाहु कुंडि पवडंतउ । दीसइ रसविसेसु सोहंतउ, न उण तिलोयनाहमुहि जंत ॥ ५५ ॥ जिणु अच्छिद्दपाणि तेणंजलि बिंदुबि पडइ नेय धरto a सिह जाइ जाव रविमंडल, पासि पलुट्टइ बिंदुवि नो खलु ॥ ५६ ॥ सेयंसि सुहावउ जिणमइ सम्मउ, समइ नवखोर | जगगुरु पाराविउ तणु निव्वाविउ, वित्थारिउ तियलोइ जसु ॥ ५७॥ पतु पत्तु सव्वुत्तमु सामिउ, चित्तु पवित् भत्तिउन्नामि । वित्तु खोयरसु अवसरि आविउ, तिहि मेलावर पुन्नहिं पाविउ ।। ५८ ।। जं गोवालबालि रिसि दिन्नड, तासु वि तारिसु फलु संपन्नउ । जं पुणु दिज्जइ जिणपहु पत्तह, का सुसत्ति फलु तासु कहंत ।। ५९ ।। *पत्ति दाणु इ, भुवणि लच्छि आणइ बलि मडुइ । भोगअभंगुर भवि भुंजावर भवु भंजिवि सुहु सिद्धिहि दावइ ।। ६० ।। दाणु परिदिज्जइ, किं चिंतामणि पाहणि किज्जइ । इहपरलोगदाणु तं साहइ, चिंतामणि पुणु टगमग चाहइ ॥ १ दंगे । २ र B। ३ जिणुजिह B जिणु जिव CD ४ पत्त C D ५ दोग्गई । ६ मंडई D ७ म B |
दोगच्चु विहएक्कु जि पत्त६१ ॥
मणि
Cruis
मागे उद
ऋषभपारणकसन्धिः ।
॥ ३६ ॥