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उपदेशमाला
विशेषवृत्तिः
सपरावसं जा खलु पेक्खहिं । अवरि ताओ ढोयहिं नियकन्ना, तइयहिं जेहिं दिद्व ते धन्ना ॥ ३१ ॥ सामि सव्वुत्तमकप्पु विगप्पहि, झत्ति नियत्तइ किंपि-अपि वि । कच्छपमुक्ख भिक्ख अलहंतय, छुहवाहिय हुय तावस ते गय ॥ ३२॥ जिणु निरसणु
16ऋषभपारण| हिंडइ दुरियई खंडइ, मंडकि महियलु नियपइहिं । तहिं समइ जि वंदहि ते चिरु, नंदहिं संपूरिजइ संपइहिं ॥ ३३ ॥ उन्हालइ ४ कसन्धिः । दीहरतरवासर, अग्गिफुलिंगतुल्ल तरणिहिं कर । तिव्वु तवइ तवु जगि वक्खाणिउ, तहवि न सामिउ पारइ पाणिउ ॥ ३४ ॥ वरिसकालि घणु वरिसइ वाई, जणसरीर थरहरहिं खराई। निप्पकंपु निम्मलउ निरुत्तझाणु झाइ जिणनाहु तिगुत्तउ ॥ ३५ ॥ सीयालइ सीयलउ समीरणु, वाइ तुसारसारु सोसियवणु। अइदीहररयणीसु निरंतरु, अविचलचित्तु झाइ परमेसरु ॥ ३६॥ विहरिवि पुरपट्टणगिरिगामिहि, निरसणपाणु अडवि आरामिहिं । वच्छरछेहिं जिणिंदु तिगुत्तउ, गयपुरपट्टणवारि पहुत्तउ ॥३७॥ जं जणिहिं रखन्नं तरुवरछन्नं, धवलहरिहिं अइधवलु किउ । धणधन्नसमिद्धं भुवणपसिद्धं, 'महिमहिलहिं तिलउत्ति विउ ॥३८॥ तं सोमजसु महाजसु पालइ, नियकुलु गुणगउरवि उज्जालइ । तसु सेयंसु आसि जुवराऊ, पुत्तु पवित्तकित्ति जसवाऊ ॥ ३९ ॥ सुरगिरि सुमिणइ सामु सुपिक्खइ, अमियकलसि सित्तउ सई लक्खइ। अइअइयारितेण सो सोभिउ, विज्जुलचक्वालु नं. थंभिउ ॥ ४० ॥ किरणजालु रविबिंबह पडियं, कटरि ४सहइ पुणु कुमरिहिं जडियं । सिटि विसिट्टि दिदु एयारिसु, सुमिणउ सोमजसिं 'सुणि जारिसु ॥ ४१ ॥ समरंगणि जुझंतह वीरह, कुमरि दिन्नु साहिज्जु सुधीरह । तिणि परपक्खु परोवि पराइउ, भुवणि जेण सो चेव विराइउ ॥ ४२ ॥ पसरह ते अक्खहि मिलिया एक्कहिं, निय सुमिणइं परिसापुरओ। परमत्थु न बुज्झहिं नरवइ पुच्छहिं, सो कहेइ फलु कुमरूदओ ॥ ४३ ॥ अह सेयंसु गवक्खि निसन्नउ, रिसहजिणेसरु पेक्खइ धन्नउ । गयपुरपुरपोलिहिं पविसंतउ, मुत्तिमंतु जिणधम्मु उवित्तउ ।। ४४ ॥ पुलईवि तं सउन्नउत्तंसु, सुमरइ पुव्वजाइ सेयंसु । आसि विदेहवासि हउं सारहिं, वइरनाह पुहवीसरि सारहिं ॥ ४५ ॥ वइरसेण तित्थंकरपासी, वइरनाहु गच्छाहिवु आसि । अहमवि
१ वर B । २ महियलिहिं ।। ३ ने इवार्थे । ४ सहइ-राजते। ५ पु, BDI ६ ई ।।
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Decemezee2020
हरका