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Nऋषभपारण
| कसन्धिः ।
तत्र उपदेशमाला
हकार-मकार-धिकाररूप, इय नीइ पयट्टहिं दंडभूय । नहु अत्थि अत्थिजणु तिच्छु कोइ तिणि दाणमणोरहु विहलु होइ ॥ १६ ॥
इय जणु तोसेविणु रज्जुकरेविणु पुव्वलक्खतेसट्टि पहु। सिरिनाहितणुब्भवु गयभवसंभवु, संजमरज्जु महेलइ लहु ॥ १७ ॥ विशेषवृत्तिःN रिसहु महा महिनाहु तियासी अत्थि वि पुव्वलक्खघरवासी । लोगंतियदेवेहिं विन्नत्तउ, दाणु देइ वारिसिउ निरुत्तउ ॥ १८॥
एकह कडय किरिड कचोला वियरइ अन्नह पडिपट्टउला । मरगयमोत्तियमाणिकहारा, पउमराय अप्पइ अवरीरा ॥ १९॥ गय॥३४॥
हय गंधसार घणसारहिं, केवि करेइ कयत्थु सुसारहि। कसुवि कणयकलहोय वि देई, इय मम्गणजण सम्माणेई ॥२०॥ कच्छमहाकच्छाहिं नरिदिहि, सहुं चउसहसिहि कयआणदिहि । परिवज्जिय सावज समुज्जलु, पहु चल्लिओ चिंतेवित मंगलु ॥२१॥ चित्तह बहुलटुमि छद्रुतवुत्तमि, रिसहनाहु सिद्धत्थवणि । बत्तीस सुरिंदिहिं विहियाणदिहि, सेविउ संजमु लेइ खीण ॥ २२ ।। कसिणकुडिल कोमलकुंतलवउ उप्पाडइ पहु सिरह निरुत्तउ । वजसारु चउमुट्ठि करेई, पंचम हरिविन्नत्तु धरेई ।। २३ ।। अंसस्थलि घोलंततिसामाहि, सहहिं सिरोरुह सिवगइगामिहिं । दिनदिक्खमंगलि जं मंगलकंचणकलसुप्परि नीलुप्पल ।। २४ ॥ कच्छाईहि वि दिक्खपवन्नी जिण अणुमाणि न उण जिणि दिन्नी । विहरहिं जिण अणुमग्गि ति लग्गा, "छणचंदह जिव रिक्खसमग्गा ॥ २५॥ निवकुमार नमिविनमि जिणिंदह, असिकर करहिं सेव सच्छंदह । पोइणिपन्नपुडलिहिं छंटहि, पुष्फपयरु पहुपुरओ पयट्टहिं ॥२६ ।। अन्नह दिणइ आवइ महिम करावइ, फणिवइ जिण अम्गइ सुपरि। नमिविनमि कुमारह वियरइ, 'सायर खयररज्जु वेयट्टधरि ॥ २७ ॥ निरसणु झाणि मोणि पहु हिंडइ, नियविहारि महिमंडलु मंडइ । जणि वणि काउस्सग्गु थिरु कप्पइ, मणिमउ थोरथंभु जिव दिप्पइ ॥२८॥ कोवि भिक्ख भिक्खयर न जाणइ, अजवि जणु तिणि भिक्ख न आणइ । छुहिओ पिवासिसो घरि घरि हिंडइ, जंगमु कप्परुक्खु महि मंडइ ॥ २९ ॥ किवि नल तरल तिक्ख तुक्खारिहिं, सामि निमंतहिं तिहुयणसारिहिं । कणयकडय कडिसुत्तकिरीडहिं, अवरि पवर कप्पूरिहि वीडिहिं ।। ३०॥ सारतरलतरतिक्खकडक्खिहि, हरि
१ ली B। २ खणि B. D. I ३ नि D। ४ खि B। ५ मुपरि । ६ सारह 0 0 । ७ नर B DI ८ डDI
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॥ अन्नइ
निरसणु
कोवि
| ॥३४॥