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उपदेशमाला
विशेषवृत्तिः ॥ ३३ ॥
जं किर पावपंकु पक्खालइ, भवियह मोक्खसोक्खु दिक्खालइ । संधिबंधसंबंध' रवन्नडं, चरिउ तर रिसहजिणिंदह वन्न ॥३॥ दाहिणभरहखंडचूडामणि, सावसुवन्न नाइ सोयामणि । अत्थि अउज्झनामि सुपसिद्धी, नयरि पउरधणधन्नसमिद्धी ॥ ४ ॥ पढमरायकारणि काराविय, मणिकंचणिहिं सक्कि संपाइय । सिहरचारुचेइयहरचंगी, सयलविलासिलो यनवरंगी ॥ ५ ॥ सरलपियालवणुज्जलवाडी, जिव जहिं ४ तरुणितेव परिवाडी । गयवाहणहयसाहणहिंडहिं, ईसरलोय तहा - विजमंडहिं ॥ ६॥ जिणमंदिर उन्भड धुव्विरधयवड, रणझणंतकिंकिणिरविण । जा गव्व निरंतर हसइ गुणुत्तर, सक्कनयरि "नियवेहविण ॥ ७ ॥ कुलगरु माहिपुत्तु तं पालइ, रिसहनरिंदु सुरिंदु व लालइ । पढमुज्जनयनिहि पढमु पयावर, जणववहारु पहिलउ दावइ ॥ ८ ॥ घरिणीघणुज्जलपेमगहिल्ली, तासु सुमंगलनामि पहिल्ली । अवरवि आसी सुनंदसुराणी, सयलंतेउरमज्झि पहाणी ॥ ९ ॥ -
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हिं
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पढमु सुमंगलदेविहि दुद्धरु, बंभी जुर्यालि जाउ भरहेसरु | बाहुबलि बाहुबलि सुनंदहि, सुंदरिजुयलि जाउ जस कंदहिं ॥ १० ॥ राणी पुणु पसवेइ सुमंगल, सीलसमुज्जलकयजयमंगल । अट्ठाणवई 'जणेइ तणुब्भव, अउणापन्नजुयल अपुणुब्भव ॥ ११ ॥ दसदुगुणा लक्खह पालि -वि, पुव्वह कुमर - वासुलीला लड्डु । तेर्साट्ठतिअग्गल पुणु कयमंगल रज्जलच्छि पालेइ पहु ॥ केवलु बज्झहिं मत्तदंति, ससुवन्नदंडवर छत्तपंति । निवर्डति पास जूयारहट्टि, पुणु मारु सुणिज्जइ सारिवट्टि ॥ णिज्जइ वेसहं केसभारु, अहलोयहिं मुणि परपरहं दारु । दारिद्दमुद्ददीसेइ देसि, वरतरुणिजणह मज्झप्पएसि ॥ १४ ॥ धणवंत दिंत नहु करहिं काणि, उग्गाहहिं निवइ “नविउण दाणि । "संभुवि अवजाणहिं धणि जणाह, छलु आणाहिं नो पुण लोभिताहूं ।। १५ ।। १ रवन्नउं रम्यमित्यर्थः । २ स B । ३ नाइ शब्देन उत्प्रेक्षते विद्युदिव । ४ तेवतरुणी D। ५ निजवैभवेन । ६ पवर । ७ छत्तर । ८ नउणि । ९ सेतु ।
ऋषभपारण
कसन्धिः ।
॥ ३३ ॥