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उपदेशमालाविशेषवृत्तिः
॥२६॥
मान
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गामाउ एगया एइ अज्जुणकुटुंबी । अइतिसियभुक्खिओ सो पेक्खइ ममो फलियकच्छं ॥४०० ॥ धणिओ जोयंतेण वि जाव न दिट्ठो तओ तहिं ठाणे । दुगुणं मोल्लं मिल्लित्तु चिम्भिडं खोलए खित्तं ॥ ४०१ ॥ नगरगओ भक्खिस्सं तावय पुरपवरसिद्विपु
रणसिंहकथा त्तस्स । केणवि कट्टिय नीयं सीसं सेसं धडं पडिअं ॥४०२ ।। उक्खयसुतिक्खखग्गेहिं तक्खणे रक्खगेहिं सुहडेहिं । दिट्ठो गवेसमाणेहिं अज्जुणो दुजणेहिं व ॥४०३ ॥ भणियं किमेत्थ खोले चिन्भिडियं किमिह रुहिरधाराओ। जोयंति जाव. तं ताव पुत्तसीसं पलोयंति ॥ ४०४ ॥ तो बंधिऊण नीओ अमच्चपासे कयंतपासेव । तेणुत्तं किमरे वेरमासि जं मारिओ बालो ॥४०५।।। अह भणियमज्जुणेणं न किंपि जाणामि सामि ! घडइ पुणो। रन्नावि पुच्छिओ सो एयं चिय 'बवइ पुणरुत्तं ॥४०६॥ राजा-घडइ धडइति पयर्ड कि जंपसि रे कहेसु परमत्थं । अर्जुनः-एय दसाए कहिए वि देव ! को पञ्चओ होइ ।। ४०७ ॥10 सुण ताव तहवि पइमारियाए मारित्तु निसि पई सगिहे । मुहकयमंसबिडालाणुसारि खट्टिक* दिट्ठाए ॥ ४०८ ॥ भणियं धावह धावह इमिणा मह मारिओ पई एस । करधरिय सलोहियकत्तिएण हाहा हया अहयं ॥४०९ ।। उबद्धो पुच्छिजंतो स भणइ 10 सव्वत्थ घडइ घडइ त्ति । सरुहिरकत्तिय घाइय नरदसणाओ न किं घडइ ॥ ४१०॥ तीए तस्स य सीलं जणाउ जाणिय IN निवेण सो मुक्को । संपइ किं पुण होही मह कम्मेहिं न जाणामि ॥४१ ।। तो आरक्खियपहुणा पर्यपियं अहह दुधिट्ठोऽसि । करकयनवकट्टियमत्थओ वि जं एवमुल्लवसि ॥ ४१२ ॥ उप्पाडह रे एयं तो सूलारोवणाय सो नीओ। अह तत्थेगो पुरिसो पत्तो अइकालविगरालो,॥ ४१३ ॥ तेणुत्तं जइ एयं मारिस्सह तो तुवेवि मारिस्सं । एवं च ताण जाओ समरो सव्वे जिया तेण || ॥ ४१४ ॥ तो नियसामग्गीए राया जुज्झेउमागओ तत्थ । जुझंतस्स स जाओ निवस्स गाउय गरुयकाओ ॥ ४१५ ॥ कुंतास-IN कुंतपत्तं कूरव्व नालं व असिलयानालं । नाराया वि वराया चक्कंपि न किंपि से मुकं ।। ४१६ । रणसीहमहाराएण जाणियं
| ॥२६॥ एस न खलु नरसज्झो । जक्खो रक्खो व भवे अहवा भूओ पिसाओ वा ।। ४१७ ।। धूवकडच्छयहत्थेण तेण भणियं भणेसु
१ चवइ पुण कनं D। २ कि ।। ३ बुद्धो c. DI ४ तुमि D. [ तुमेवि ] ५ धूव कवड B, I