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उपदेशमाला विशेषवृत्तिः
॥ २५ ॥
स्थापन
रिणयाओ विन्नाणमेरिसं तुज्झ निव्वूढं ॥ ३८० ॥ कुमरो चलिओ तत्तो पत्तो अविलंबमेव कणयपुरे । नयरूसवेण महया पवेसिओ कणयराण ।। ३८१ ।। अव्बो कमलवईए सीलाइगुणाणमेयमइतुच्छं । जं विरहानलजलिओ कुमरो चडिओ चियाचके ॥ ३८२ ॥ सा एसा कमलवई उवागया जा जमस्स पासाओ । नियसीलपहावेणं दाऊण तदाणणे धूलिं ॥ ३८३ ॥ इय सुणमाणो मंडणभूसणवेसाइणादेरर्कएण | पेक्खंतो पइमां रमणीओ धावमाणीओ ॥ ३८४ ॥ दप्पणपाणीअंजणसलागहत्था करग्गककेसा | पत्ता ताउ देउलपुत्तलिया विव विरायंति ।। ३८५ ।। वरच्छेदलक्खणाहिं सालंकाराहिं नाइविज्जाहिं । तिहिं ताहिं पियाहिं समं स भुंजए विसयसोक्खाई ॥ ३८६ ।। विजयपुरासन्नम्गामसीमसिरिपासनाहतित्थंमि । कुमरो कयावि कारइ विसिट्टमट्टाहियामहि ॥ ३८७ ।। कप्पूरपूरकुंकुमकालागुरुकुंदरुक्ककुसुमेहिं । परमेसरस्स पूया पेक्खणगाई कयं बहुहा ॥ ३८८ ॥ तो जक्खो पञ्चक्खो अक्खइ अंगीकरेसु नियरज्जं । अवरस्स कोऽवगासो सइ पुत्ते विजयसेणस्स ।। ३८९ ॥ तव्वयणाणंतरमेव देवपायप्पणामपुव्वं सो । विजयपुरं संपत्तो कुमरो सेणानिवेसेण ॥ ३९० ॥ अप्पबलो सो राया तस्स न सकेइ संमुहे होउं । कोट्टारोहणठिओ तओ दुवारे कुमारोवि ।। ३९१ ॥ कयनीरऽन्ननीरोहो नियडप्पाओ सुढंकियदुवारो । कुमरस्स सो नरिंदो, सच्चं चिय गोत्तिओ जाओ ।। ३९२ ॥ सरविसरजंतवाहणसुतत्ततेल्लेसु खिप्पमाणेसु । पइवासरंपि किज्जंतएस अइगाढढोएस ॥ ३९३ ॥ पडियासु विणिज्जंतीसु झत्ति खंडीसु भज्जमाणासु । जंतेसु गओ मासो न होइ नासो अहव तासो ॥ ३९४ ॥ गयणंगणम्गलग्गा आगच्छंती कुमार आरयणी । जक्खेण दंसिआ सा धसक्किओ नासिउँ स गओ ।। ३९५ ।। झत्ति पविट्ठो तुट्ठो पुरमज्झे विजयसेणअंगरुहो । ठविओ पिउस्स पट्टे मिलिऊण पुर पहाणेहिं ॥ ३९६ ॥ सज्जेइ सज्जणाणं संसगिंग दुज्जणाण वज्जेइ । साहुणमसाहुणय अणुग्गहं निग्ग कुणइ ।। ३९७ ॥ पारद्धिजूयमज्जाइयाइं वज्जेइ सत्तवसणाई । निस्सारइ नयराओ व देसाउ तह अप्पणिज्जाउ ।। ३९८ ।। सुरभवणेसु पयट्टइ पूयाउ पायडेइ जत्ताउ । अट्ठाहियाउ नट्ठाऽहियाउ कारइ जिणहरेसु ॥ ३९९ ॥ आसन्नाउ १ 'माई' शब्द इवार्थे ।
भ
रणसिंहकथा
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