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उपदेशमालाविशेषवृत्तिः
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॥ २६२ ॥ न पविस्सिस्सं पेईयहरंमि अवजसकलंककज्ज लिया । ओसहिवसेण पुरिसो होउं अच्छामि सच्छंद ॥ २६३ ॥ जम्हा महिलामहुरत्तणेण पयईए पत्थणिज्जगुणा । चिंचिणिपक्कफलंपिव वद्धियांछा जयस्सावि ॥ २६४ ॥ " तंबोलं तरुणीओ तारानाहो तलायपाणीयं । कस्स न हरंति हिययं को वा न इमाई माणेइ ॥ २६५ ॥” सीलं च मएऽवस्सं रक्खेयव्वं सपाणचाएवि । एयम्मि विणटुम्मि नो इहलोओ न परलोओ ॥ २६६ ॥
" सीलं सासयवित्तं, परमपवित्तं अकित्तिमं मित्तं । उत्तमकित्तिनिमित्तं, मुत्तिसुहपसाहणनिमित्तं ॥ २६७ ॥ अधणाण धणं सीलं, भूसणरहियाण भूसणं परमं । परदेसे नियगेहूं, सयणविमुक्काण नियसयणो ॥ २६८ ॥
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" जालामालकरालु होइ हुयवहु हिमसीयलु, बेविकूल बोलंतु पत्तु फुट्टइ गिरिसरिजलु ।
केसरिकुंजर जक्खरक्ख अहि लीह न लंघहिं, निम्मलसीलपहावि जीव जगि अखलियनंदहिं ॥ २६९ ॥ "
तो कयपुरिसायारा पाडलिपुरपच्छिमाए चक्कउरे । चक्कहरसुरे धारइ कमलवई फुल्लवडुयत्तं ॥ २७० ।। इओय- पत्तीहिं तेहिं कहिओ कमलवई चायवइयरो सव्वो । अणुतप्पइ तो कुमरो अवगयमंताइ माहप्पो । १७१ ।। अलियपलावेण मए इय अवजसदोसदूसिया संती । कमलवई किं जीवइ किमेइ पियराण पासंमि ॥ २७२ ॥ संपइ अहं अहन्नो अकज्जकज्जलजलेण ओहलियं । नियवयणं दाइस्सं कह कमलिणि कमलसेणाण || २७३ ।। हिययं तडत्ति फुटं कहूं न मे जेण चिंतियं एयं । कह जीहावि न तुट्टा इय वाणी जंपिया जीए ॥ २७४ ॥ तह कुलिसं कुणमाणं तडिवियडाऽऽडोवतडयडारावं । किं गयणमंडलाओ निवडइ नहु मत्थए मज्झ ।। २७५ ।। जा गंधमूसिया सावि निग्गया दीसए तहिं नेव । तो रणसीहो चिंतइ तीए पावाए पावमिणं ॥ २७६ || hasकुडकुडंगी विदेचाडणाए चउरमई । केणावि छेउणा सा करितु एयं गयाऽवस्सं ॥ २७७ ॥ सोमापुरीए तीए गंतूणं
१ पसतं DI
रणसिंहकथा
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