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उपदेशमालाविशेषवृत्तिः
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मूलिया बद्धा । मा मज्झ रूवरेहाहरियमणो होउ खयसेत्ति ॥ १५३ ॥ न मए नायं एवं, ता जाव पुणोवि तं गयं मिहुणं । पच्छा पुरिससरूवं, हं जे पिक्खामि अप्पाणं ॥ १५४ ॥ हियए धसक्कियाए, जावप्पो जोइओ समग्गोवि । विसुमरिया खयरीए, ता कन्ने मूलिया दिट्ठा ॥ १५५ ॥ जावुच्छोडेमि तयं, ता साहावियसरीरया जाया । नाओ तीए पहावो, ता संगोविय मए धरिया ॥ १५६ ॥ जायाऽऽमरिसेण य भीमरायकुमारेण बहुपयारेहिं । कमलवईए माया, कुमरीदाणे कया पडणा ।। १५७ ।। कमलिणिनामाए इमाए, राइणो साहिऊणमारद्धो । बीयदिणे विवाहो, कमलवई जाणिऊणेवं ॥ १५८ ॥ न चलइ न जीमइ न हसइ न सुयइ न वयंसियाउ आलवइ । खलियारिओ खलेहिं व सुयणो पाउणइ नेव रई ।। १५९ ॥ वेलविआ जेणाहं, निसाए पश्चारिऊण तं जक्खं । तस्सेव पुरो काहं, सचिंतियं इय विचिंतेइ ॥ १६० ॥ जाए जामिणिसमए, परिवारं वंचिऊण 'नीहरिआ । पत्ता जक्खस्स पुरो, एवमुवालद्धुमारद्धा ॥ १६९ ॥ तं कह सुररपहाणो, पाहाणो होसि कोवि धुत्तो वा । अमयं मन्ने जो, कवलावसि कालकूडरसं ॥ १६२ ॥ तहवि हु करेसि किं नाम, मह वसे नूणमप्पणो अप्पा । इय भणिय गया रणसीहगुहुरासन्नतरुगहणे ॥ १६३ ॥ तरुसाहाए बद्धो, पासो नियनिविडउत्तरिज्जेण । मरणेक्कताणमाणसवित्तीए तीए भणियमिणं ॥ १६४ ॥ वणगयणदेवयाओ ! दिसाओ सव्वाओ सुणह मह वयणं । रंणसीहनाहलोहेकलालसाए मए बहुहा ॥ १६५ ॥ आराहिएण अणिमत्तवेरिणा गुज्झगेण वेलविआ । इह हि मरिस्समवस्सं, अहं न अवराहिणी होमि ॥ १६६ ॥ पियविरहदाहदूमिज्जमाणमाणसकुडीए मे मच्चू । निच्चं होही जीवंतियाए ता जीविएण अलं ॥ १६७॥ नियसत्तमचलचित्तेहि तोलियं फलइ नत्थि संदेहो । इय नहु नाहो सीहो, जाओ ता होउ अन्नभवे ।। १६८ ।। इय भणिऊणं कंठे, निवेसिओ निविडपासगंठीए । पेल्लियपायाहारं मुको अप्पा निरालंबो ।। १६९ ।। अणुमणं लग्गा, सुमंगला तत्थ जाव जोएइ । तरुमज्झे ता पेक्खड़, तं लंचंतं निरालंब ।। १७० ।। हाहारखं कुणंतीए, तीए तत्थागओ कुमारो वि । मा साहसं ति जंपइ, छिंदइ छुरियाए पासं च ॥ १७१ ॥ मुच्छानि -
१ नीस ।
रणसिंहकथा
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