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रणसिंहकथा
लोयणेहिं जाणिज्जइ जणाणं ॥ १३४ ॥ गिहमइगयाए तीए, चिंतइ एसो अहं विवाहेमि । जइ नहु एयंता मज्झ, जीविएणावि विशेषवृत्तिःINI पज्जतं ॥ १३५ ॥ आवासे संपत्तो- विन्नत्तो पुण पुरीए पत्थाणे । पुरिसोत्तमपुरिसेहि, अज्जवि कि किज्जइ विलंबो ॥ १३६ ॥ उपदेशमाला
भणियमणेण इह मह, पओयणं किंपि अस्थि तो ताव जाह भो तुब्भे । सिग्घमविघं अयमहमुवेमि हियइच्छिए जाए ॥१३७।।
तत्यत्थि भीमराओ, रायसुओ कमलसेणसेवाए । तहिमागओ समीहइ, कमलवई सो वि उव्वोढुं ।। १३८ ॥ तीए धाई उवचरइ, ॥११॥ चीरकप्पूरकंचणाईहिं । सा कमलवई पुच्छइ, नेच्छइ नामपि तस्सेसा ॥ १३९॥ उवचरइ पवंचइ, चारुचाडुचाहेइ चक्खुखेबंपि ।
जो सो ताण तणं पिव, सरंति वामाय वामाओं ॥ १४० ॥ जक्खगिहे गच्छंती, नाया सा तेण तोऽऽणुमग्गेण । पत्तो महुरा|लावेहिं कहवि जइ नाम इच्छेज्जा ॥ १४१॥ धणदाणजणसम्माणरूवसोहगपेसलाऽऽलावा । तिणमिव सव्वे तं किंपि कारणं रम्मपेम्ममि ॥ १४२ ॥ सुरगिहदुवारदेसे, उवविट्ठो जाव चिट्ठइ स धिट्ठो । ता कयपूआ सा आह, हेल्लि कह गच्छिमो गेहं ॥ १४३॥ एसो दुवारदेसे, जीपस्सइ किंपि अहव इह एही । ता तं चिट्ठ दुवारे, वारेसु तमेत्थ पविसंतं ॥ १४४ ॥ तीए तहा ठिआए, विजणंमि मूलिया मयच्छीए । कमलवईए कन्ने, बद्धा जा पुव्वमुवलद्धा ॥ १४५ ॥ जाया पुरिससरूवा, नीहरिया पुच्छिया कूमारेण । देवच्चय ! किं अजवि, न सुंदरी नीइ मज्झाओ ॥ १४६ ।। तेणुत्तं इयमेसा, अवरा पुण कावि नहु मए दिट्ठा । इय भणिय गया गेहं, मूलि कन्नाओ गोवेइ ॥ १४७ ॥ सुरभवणं नीसेस, दु तिवारा पिक्खिऊण सुविलक्खो। पत्तो स नियावासे, सुमंगलाकुमरिपासंमि ॥ १४८॥ को भट्टिदारिए ! एस वइयरो कहमिहागया तंसि । भणिया सुमंगलाए कमलवई कहिउमारद्धा ॥ १४९ ॥ ओसहिपभावओऽई, पुरिसो होऊण आगया इहई। जो तेण पुच्छिओ तह, दक्खविया तेण तं च तहा ॥ १५० ॥ सुण ओसहिउप्पत्ति, चिंतामणिभवणमेगयम्हि गया । विजाहराण मिहुणं, पलोइयं तत्थ चंकमिरं ।।१५।। चिंतामणिमंदिरतुंगसिंग अइलंघणेण खडहडियं । पूयापहाणवावारवाउलं तंजिसेवेइ ॥ १५२ ॥ खयरीए मज्झ विज्जाबलेण कन्नंमि
१ जेण जे D। २ वेसे ।
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