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उपदेशमालाविशेषवृत्तिः
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पभणइ कणयनरिंदो, हरिसविसप्पंतपुलयपन्भारो। अच्छरियं अच्छरियं, वच्छ ! इमं कह कयं तुमए ।। ९६ ।। हलवाहणेण
रणसिंहकथा एक्केण, धाडिया सगुडगयघडा एए। अयमाह एस केली, महकय रक्खस्स जक्खस्स ॥ ९७ ।। अह कणयसेहरेणं, धूवकडुच्छुयविहत्थहत्येण । तह विनत्तो सहसा, जह जक्खो होइ पञ्चक्खो ॥ ९८ ॥ रणसीहकहा कहिया, तेणं एयस्स कणयरायस्स । जम्माऽवहारपमिई, जाव मए अयमिहाऽऽणीओ ॥ ९९ ॥ ता विजयसेण-विजयाणमेस तणओ न एस कोडंबी। तणयविओय पलित्तेहिं, तेहिं अंगीकया दिक्खा ॥१००|| अह सो ते पुहईसे, हक्कारावेइ हरिसपडहत्थो। सुरकहियं कहिऊणं, सब्वे सम्माणिया तेण ॥ १०१॥ गरुएण पबंधेणं, वीवाहमहुस्सवं पवत्तेइ । जामाइयस्स देसं, करिहरिरहपत्तिणो देइ ॥ १०२॥ विहियपडिवत्तिणो ते, विसज्जिया आगया महीवइणो । सीहो वि हु विसयसुह, सह कणगवईए अणुहवइ ॥ १०३ ॥ ससुरसमप्पियदेसं, अह पत्तो पालए नएक्कनिही । रणसीहो नरसीहो, नियरजं वज्जियाऽवजं ॥ १०४ ॥ सह वल्लहाए सुंदरकोडंबी आणिओ सपासंमि । उचि-IN यन्नू उचियाई, चिंतेइ स रज्जकज्जाइं ॥ १०५ ।। सोमापुरीए पुरिसोत्तमस्स, रन्नो सुया रइव्व सयं । कणगवईए पिउच्छा धूया अभविसु रयणवई ॥ १०६॥ तीए कणगवईए, विवाहअच्छेरयं सुणंतीए । खुहिओ खणेण अणुरायसायरो रायरणसीहे ॥१०७| जह उवइ8 मिटुं, न तहा दिटुं त्ति जयठिई एसा । रमणीण पुण विसेसो, परपञ्चयचक्खुपेक्खीण ॥ १०८ ।। पुरिसुत्तमेण तत्तो, 16 तच्चित्तं पुत्तिगाइ जाणित्ता। सीहाणयणनिमित्तेण, पेसिया नियपहाणनरा ॥ १०९ ॥ वरमुहरायं दित्ती रयणवई नायवल्लरिव्व वरं । पूगतलं व तमीहइ, आहारं इय भणेजाह ॥ ११०॥ पत्तेहिं तेहिं सीहस्स, साहिओ पणमिऊण नियपहुणो। संदेसो सीहेण वि, भणियं जाणेइ कणगनिवो ॥ १११ ॥ तो जोहारिय सीहं, नीहरिया कणगसेहरं पत्ता । पुरिसोत्तमसंदेसं, दिसंति पणमिय सुहासीणा ॥ ११२ ॥ भणियमिमेण मह भायणेजिया सावि अत्तया मज्झ । ता तीए विवाहो, धुवं मए चेव कायव्वो ॥ ११३ ॥ लहु हक्कारइ ताहे, रणसीहं कणयसेहरो पासे । अइगुरुसामगीए तेहिं समं चेव पेसेइ ॥ ११४ ॥ सो पाडलिसंडपुरे, अक्खं
॥९॥ १ कनकवत्या पितृस्वसुः पुत्री रत्नवती। २ त्ति दे० D
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