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उपदेशमाला - विशेषवृत्तिः
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नरवइलच्छीविव तस्स, सहरिसं खिवइ वरमालं ॥ ८३ ॥ उब्भडभिउडी विडंकियनिडालमुत्तं मिलित्तु निवईहिं । असमंजसमेयं सुधा, कणयराय ! किं कारिअं तुमए ॥ ८४ ॥ जइ तुह सम्मयमेयंपि, आसि हकारिया किमम्हे । विग्गोविएहिं अम्हेहिं, किं तए साहियं वेरं ॥ ८५ ॥ ता दिज्जउ कस्सय खत्तियस्स हयहालियस्स न सहामो ।
कनकशेखरः - मणवलहो वरिज्जइ, सयंवरे तदिह किमजुत्तं ॥ ८६ ॥ ता किं भणेह तुब्भे, नयहीणं हालियव्व बालव्व । राजानः- रे हालिय ! कहसु कुलं, मरेसु मा मोरउल्लाए ॥ ८७ ॥
रणः- न कुलकहा पच्छाओ, कहिए वि कुलंमि पच्चओ कत्तो। ता समरभरोशिय सव्वमेव साहिस्सए मज्झ ॥ ८८ ॥ अह निविडगुडाडोबा, घडाओ सुहडा स कंकडकडप्पा । निवईण बले जाया, पक्खरिया तिक्खतुक्खारा ॥। ८९ ।। ता भल्लभल्लिवावलसेल्लनारायमोग्गरगयाहिं। पहरति तेसिं फेरेइ, पवयणं जलणपज्जलरं ॥ ९० ॥ तस्स न अंगे लग्गइ, पहारलेसोवि बालवसहावि । मुक्का नच्छाहिवि, कढिऊण जगडंति सत्तुबलं ॥ ९१ ॥
सुहडउभडकंकडा वरिय उप्पाडहिं, सिंगिधरिखरखुरंमि २ पक्खरियपाडहिं । ताडेविणु तुंडवरिगडयडंतगयघडविहाडहिं अभिहंता ते कसरघग्घर मालविसाल, कसु न चमकओ मणि जणहिं । जिंव केसरिसुकराल ।। ९२ ।। करिवि पाणिहिं झालमिलंतु उप्पाडs सीरवरु सीरपाणि जिंव रूप्पि संगरि, आकट्टिवि कंधरहिं, खेत्तखोणि जिव खणइ ते अरि । किंवि लोट्टावइ किवि दहइ किवि दारेइ सलीहु, हरिणजूहमज्झारि जिम्व गुंजारइ रणसीहु ।। ९३ ।। अह निरग्गलझाल विकरालु उप्पाडइ परसुकरि । परसुरामु अज्जुणह जिंव रणि समुविसमुवि न हु गणइ । राउवंचु निट्ठवइ तक्खणि हलि सुपलाणइ, सो सहइ एक्कु जि तेयसणाहु | तारायणि अच्छहराया जिंव उग्गओ गहनाहु ॥ ९४ ॥
१ कट्टि । २ खुरग्गि य खरिय C, खुरिय B ३ राउबंधु ।
रणसिंहकथा
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