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उपदेशमालाविशेषवृत्तौ
विषयरागे
सत्यकि
॥ ३८१॥
कथा ।
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चे?(चित्ते)ण पाडिओऽणेण । अहह अहं वि (ति) सकोवो, पलायमाणं तयं नियइ ॥३२॥ तस्साणुमग्गलम्गो, गच्छइ गुरुगिरिगुहाइठाणेसु । कत्थवि न जाव छुट्टइ, ता मायं कप्पइ स एयं ॥ ३३ ॥ भयतरलतारसारंग-लोयणालक्खलक्खियाणि खणा । विउरुव्वइ दिव्वाई, पुराणि पुरओ स तिन्नि तओ ॥ ३४ ॥ अणुरत्तमत्तचित्तो, तत्तं सो ताण जाव जाणेइ । ताव पलीवइ अइउग्ग-अग्गिजालाहिं ताणि लहुं ॥ ३५ ॥ अह अणुधावइ आभोगिऊण छन्नस्स तस्स संचारं । नियइ समोसरणे सामि, सालपरिसाए सुनिलुकं ।। ३६ ॥ पुण देसणाऽवसाणे, आरंभइ रंभएं स संरंभं । पायालकलसकुहरे, पविसंतं झत्ति मारेइ ॥ ३७॥ अइसयतो से तोसो जाओ, विजाण चक्वट्टिवरो। अमरासुरविज्जाहर-अजसारो जए जयइ ।। ३८ ।। तित्थेसु तित्थनाहाण, गीयनाइयं पयट्टेइ । पइवासरंपि संझासु, पत्तअसव (वस)त्तसम्मत्तो ॥ ३९॥ किं पुण विसप्पिकंदप्प-दप्पओ पेम्मपरवसो संतो। अभिरमइ रायसत्थाह-सेद्विविप्पाण रमणीओ ॥४०॥ न पुनरेवं चिन्तयति-याः शृङ्गाररसाश्चितस्तनघटाः स्पष्टाक्षराङ्गावलिच्छायकापर्णवपेशलाः कुटिलताप्रौढप्रपापालिकाः । दुर्ग दुर्गतिमार्गमेकमसकृत्तृष्णावतां भ्राम्यता, जन्तूनां त्रिजगत्यमूर्विदधिरे मोहेन योषिअपाः ॥४१॥ रायाईणमणग्गलमिय दुक्खमभिक्खणं खिवेइ मणे । सकइ न कोइ काउं, पुण से पडियारमपंपि ॥४२॥ अइगुणियवगुविज्जा गउरवणिज्जा अणेयलोयस्स । दो तस्स संति सीसा, नंदीसर-नंदिनामाणो ॥ ४३ ॥ उज्जेणीए पजोयराइणो पुष्फगेण गंतूण । मोत्तुं सिवमंतेउर-रमणीओ धरसिया तेण ।। ४४ ॥ अह वियडभिउडिभासुरभालो भासेइ मंतिणो निवई । इय भे मई हयासा, हलंमि जोएमि किं तुब्भे ॥४५॥ विम्गहिउँ, निग्गहिउँ संगहिउँ वा न वारह किमेयं । मुक्काओ मोकलाओ, किं तुब्भेहिं | सभज्जाओ ॥ ४६॥ तो तेण मंतिणा मंतिऊण सव्वंगचंगिमागेहं । भणिया गणिया सवसीकरेसु सच्चइमुमे ! तमिमं ॥४७॥ गयणंगणग्गमम्गेण, जाव आवइ अवंतिनयरिं सो। तावऽग्गकरगहधूव-धारिणी उदए एसा ॥ ४८ ॥ वाराउणेगाउ, दणुटुंतिय तमभिमुहियं । सम्मुहर्मितस्स कयाइ, तस्स दसेइ कमलदुर्ग ॥४९॥ जाव पसारइ पाणि, वियसियसरसीरुहस्स सो ताव । मलियम पइ सा तमिय, पुच्छए सो किमेयंति ॥ ५० ॥ भणियं तीए तुब्भाण, जाजी जोगं न फुल्लकमलमिणं । वियसियकम
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॥३८॥