________________
उपदेशमालाविशेषवृत्तौ
॥ ३८० ॥
माणसे एस आरंभ ||११|| ता कहमेयं मालिनपक्ख- पक्खालणं भवे मज्झ । इय ह) जेट्टऽज्जा संदेहसंगया सा गया संती ॥ १२॥ भणिया केवल नाणप्पयाससोहेण साहुणा एवं अखलियसीलालंकारधारिणी साहुणी एसा ॥ १३ ॥ अवमाणणा मणागंपि, ता न केणावि इभा कायव्वा । गब्भो उ कओ केण वि, छलेण पावेण केणावि ॥ १४ ॥ जाओ जाए समए, वुद्धिंढ सड्ढयकुलेसु पाउणइ । एक्कारसंगधारी, कन्नाहेडेण जाओ य ॥ १५ ॥ सच्चइनामो सह संजयाहिं गंतूण सो समोसरणे । निसुणंतो वक्खाणं, संजाओ सुथिरसंमत्तो ॥ १६ ॥ कइया वि कालसंदीवगेण विज्जाहरेण जिणनाहो । पहु ! मह मरणं कत्तो त्ति, पुच्छिओ दंसइ सिसुं तं ॥ १७ ॥ तो तप्पासे गंतुं, खयरो जंपेइ अइअवन्नाए । तमरे ! मारेसि ममं ति लाइ पाएस मड्डाए ||१८|| असरिसममरिसमेयस्स, एस उबरिं सिसूवि वहमाणो । पेढालेणं उवलोभिऊणमंगीकओ समए । १९ । सिक्खविओ सव्वाओ, विज्जाओ साहु साहियाओ य । आरंभइ साहेउं, तंपि महारोहिणि विज्जं ॥ २० ॥ पंचसु भवेसु साहेमाणो सो तीए मारिओ पुत्रि । छट्टे भवंमिं सिज्यंतिया वि तेणं न पडिवन्ना ॥ २१ ॥ जं तेण सिज्झमाणी सा, पढमं पुच्छिया निययमाउं । छम्मासपमाणाऊ, कहिओ सो तीए चिंतेइ || २२ || छम्मासवसेसाऊ, अहुणाऽहमिमीए किं करिस्सं ति । संपइ इमिणा विहिणा उ, साहु सो साहिउं लग्गो ॥ २३ ॥ जलिय चिउवरिवित्थारिअल्लचम्मंमि तम्मणो सुथिरो । वामचरणग्गअंगुटुएण उद्घट्टिओ संतो ॥ २४ ॥ जावं करेइ ता जाव ताणि चिदारुगाणि दीपंति । तह तत्थ कालसंदीवगेण दिट्ठो जवंतो सो ॥ २५ ॥ तद्दाहकए तो पक्खिवेइ कट्टाणि तत्थ स पुणोवि । सत्ताउ सत्तरत्ते वि जाव न चलेइ सो ताव ॥ २६ ॥ पञ्चखीहोऊणं, रोहिणीदेवी निवारए खयरं । मा कुरु विग्धं सिग्घं, सिज्झिस्समवस्समस्सऽम्हि ॥ २७ ॥ अह अक्खर पचखा सा, सव्वं सचइस्स सिद्धा ते । मह देहि एगमंगं, अंगे पविसामि तुह जेण ॥ २८ ॥ सा तेण निडालेणं, पडिच्छिया छिडमेत्थ तस्सासि । तुट्टाए रोहिणीए, विहियं तइयं तहिं नयणं ।। २९ ।। वियरेइ तो तिलोए, तिलोयणो जक्खरक्खअक्खलिओ । चेडगधूया अज्जा, माया मे धरिसियाऽणेण ||३०|| पावेणं ता पावउ, दुन्नयविसपायवस्स फलमेसो । इय मारइ पेढालं, अह पेक्खर कालसंदीवं ॥ ३१ ॥ बलिमड्डाए पाएसु, पाव
विषयरागे
सत्यकिकथा |
॥ ३८० ॥