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उपदेशमाला| विशेषवृत्तौ
॥३७७॥
णावि हु, अमुणियदुत्तरभवस्स रूवेण । ता अन्ज किमंग सहेसि, नेव मुणिदेहसंघटुं ॥ १७ ॥ सुयपुब्वभवो जाओ, जाईसरणो खणेण सो ताहे। दूरुग्गयवेरग्गो, हरिसंसुजलाउलच्छो य ॥ १८ ॥ दाउं पयाहिणाओ, वंदित्ता भावाओ य भगवंतं । मिच्छा
मेघकुमार
कथा। दुकडपुरवं, भणेइ मोत्तु महऽच्छिजुगं ॥ १९ ॥ जं सेसमंगमेयं, दिन्नं साहूण तो जहिच्छाए । संघटितु अभिग्गहमेयं गिन्हेइ || मेहमुणी ॥ १२० ॥ एक्कारसअंगाई, अहिजिउ विहियभिक्खुपडिमो सो। गुणरयणवच्छरतवं, काउं संलिहियसव्वंगो ॥ २१ ॥ परिचिंत्तइ जाव जिणो, सव्वसुहत्यी विहारमायरइ । ता चरमकालकिरिया, काउं मे जुज्जए तत्तो ।। २२ ॥ आपुच्छइ भगवंतं, जह अयं सामि ! तवविसेसेण । एएणुदाणनिसीयणाइ कटेणऽणुढेमि ॥ २३ ॥ तुम्हाणमणुन्नाए, इह रायगिहस्स विउलसेलम्मि । अणसणविहि विहेडं, मणोरहो मज्झ जाओ ति ॥ २४ ॥ तत्तो पत्ताऽऽएसो, खामित्ता समणसंघमन्नेहिं । कडजोगीहिं समेओ, मुणीहिं सणियं समारुहिउं ॥ २५॥ तत्थ गिरिम्मि विसुद्धे, सिलायले सयलसल्लनिम्मुक्को। पालियपक्खाऽणसणो, विजयविमाणे समुप्पन्नो ॥ २६ ॥ तस्स वरिसाई बारस-परियाओ देवलोगओ चविउ । वासे महाविदेहंमि, सिज्झिही बुज्झिही झत्ति ॥ २७ ॥ इय अन्नेहि वि साहूहि, मोक्खसोक्खेकबद्धलक्खेहिं । बहुजणजइसंघट्टो, सहियव्वो गच्छवासंमि ॥ १२८ ।। इति मेघकुमारकथा ॥ १५४ ।। दुष्करश्च क्षुद्रजन्तुभिर्गच्छे पासो यतस्तत्र
अवरुप्परसंबाहं, सुक्खं तुच्छं सरीरपीडा य । सारण वारण चोयण, गुरुजणायत्तया य गणे ॥ १५५ ॥ इक्कस्स को धम्मो ?, सच्छंदगई मईपयारस्स । किंवा करेइ इक्को ?, परिहरउ कहं अकजं वा ॥ १५६ ॥ फत्तो सुत्तत्थागम, पडिपुच्छण चोयणा व इक्कस्स ?। विणो वेयावच्चं, आराहणया य (वि) मरणते ॥ १५७ ॥ पिल्लिज्जेसणमिको, पइन्नपमयाजणाउ निच्च भयं । काउमणोऽवि अकजं, न तरइ काउण बहुमज्झे ॥ १५८॥
॥३७७॥ उच्चारपासवणवंतपित्तमुच्छाइमोहिमओ इक्को। सहरमाणविहत्थो, निक्खिवइ व कुणइ उड्डाई ॥ १५९ ॥ -
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