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उपदेशमालाविशेषवृत्तौ
॥ ३६१ ॥
संते ॥ २८ ॥ एए छुहाऽपरद्धा, जं जाया मुक्तधम्ममज्जाया । सो खलु सव्वो सावग !, तवाऽवराहो न अन्नस्स ॥ २९ ॥ लग्गो पाएसु इमो, खमेह अवराहमेगयं मे । अज्जप्पभिई सव्वा, मह चिंता पवयणस्सावि ॥ १३० ॥ जाओ मणे चमक्को, एसो चाणक्कयस्स जह एवं | बहुजणविरोहिणो राइणो हि मा देज्ज कोइ विसं ॥ ३१ ॥ तो सो लग्गोऽलक्खियमग्गेण विसेण भावियं भूवं । जह खुद्दपउत्ताइं तं न विसाई अभिभवति ।। ३२ ।। निच्चं पासोवगओ, तं भुंजावेइ अन्नया कवि । तंमि अपत्ते देवी, गब्भवई भुंजइ सगासे || ३३ || अहिलसइ तस्सगासं, अमुणिय परमत्थएण तेणावि । अइपीइपरवसेणं, दिन्नो नियथालओ कवलो ॥ ३४ ॥ जाहे विसन्नमेसा, तं भुंजइ ताव परवसा जाया । चाणकास निवेइयमेसो पत्तो तुरियतुरियं ॥ ३५ ॥ नो एसा वणिज्जा, जेण सगब्भुत्ति चितिउं चित्ते । तक्कालकज्जसज्जो, सत्यं सयमेव घेत्ता ॥ ३६ ॥ उदरं दारिय गव्र्भ, निफन्नप्पायमप्पहत्थेहिं । गिन्हइ पुराणघयपुनरूयमज्झमि पक्खिवइ ॥ ३७ ॥ लद्धोवचयस्स कमेण तस्स नामं कथं जहा एसो । होउ इह बिंदुसारो, जं विसबिंदू सिरे तस्स ॥ ३८ ॥ गब्भत्थस्स निवडिओ, न तत्थ रोमुब्भवो तओ जाओ । कालेण चंदगुत्ते, निहणं पत्ते निवो स कओ ॥ ३९ ॥ उच्छाइयनंदन रिंद - मंतिणा एगया छलं लहिउँ । कहियं मोरियपुत्तो ( रन्नो) सुबंधुनामेणमेगंते ॥ १४० ॥ जवि न कयाइ सामिय!, अविसायपसायचक्खुणा वि ममं । पेच्छह तहावि तुब्भं हियमेवम्देहिं वतव्वं ॥ ४१ ॥ हह हा माया 'चाणक्कमंतिणा फालिऊण फुडमुदरं । पंचत्तणमुवणीया, ता भे एत्तो वि को वेरी ॥ ४२ ॥ इय सुणिएणं कुविएण, राइणा पुच्छिया निया धावी । तीए वि तहा कहियं, मूलाओ न कारणं सिहं ॥ ४३ ॥ चाणक्को संपत्तो, पत्थावे पत्थवो विं तं दद्धुं । वियडुब्भडभिउडिविडंकअंकभालत्थलो जाओ ॥ ४४ ॥ “ रमणीओ रायाणो रायंधा रुक्खसारणीओ य । सन्निहिएहिं निज्जंति, जत्थ तत्थेव वच्चति ॥ ४५ ॥ विमुहंमि तंमि चिंतेइ, सो कहं एवमेस सत्तुं व । मं पेच्छइत्ति खुद्धो, चाणक्को नियगिहंमि गओ ॥ ४६ ॥ दाऊण गेहसारं, पुत्तपपुत्ताइसयणवग्गस्स । इय नियमईए मन्नइ, मह पयसंपत्ति छाए ॥ ४७ ॥ केणवि पिणेणेसो, संके राया पयारिओ एवं ता तह करेमि जह सो, दुक्खाभिहओ चिरं जियइ ॥ ४८ ॥ तो पवरगंधबंधुरजुत्तिपओगेण साहिया
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चन्द्रगुप्त
चाणक्य
कथा ।
॥ ३६१ ॥