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उपदेशमालाविशेषवृत्तौ ॥ ३६०॥
कथा।
१५ ॥ जाओ मायणगई गवेसामा दिवा कवि
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यमणस्स कुवियस्स भवविरत्तस्स । मत्तस्स मरंतस्स य, सब्भावा पायडा हुंति ॥ ८॥" इय नाउँ चाणक्केण, तेसि सव्वेसि IN
चन्द्रगुप्तलच्छीविच्छई । जह जोगं मग्गित्ता, कोसो वुडिंढ परं नीओ ॥ ९॥ एवं चिंतिजंतो, चाणक्केणं स चंदगुत्तनिवो। पालेइ रज-18
चाणक्यमोम, अहऽनया दारुणं जायं ॥ ११० ॥ वुड्ढावासेण ठिया, गुरुणो संभूयविजयनामाणो । तत्थ पुरे नियसीसा, विसज्जिया जल-IN हितीरेसु ॥ ११ ॥ नवठविय सूरिकन्ने, कहिज्जमाणेसु मंततंतेसु । खुडुगदुगेण सन्निहियभावओ निसि सुयं किपि ॥१२॥ गुरुविरहुकंठाए, गंतुं कित्तियपहाओ तं वलियं । सेसो साहुसमुहो, पत्तो निद्दिठ्ठठाणेसु ॥ १३ ॥ सयमेव गुरु हिंडइ, मिक्खडा सावगाइगेहेसु । फासुयमहेसणिज्ज, भिक्खं अइपरिमियं लहइ ॥ १४ ॥ दाउं पढमं तं तेसिमप्पणा भुंजए जमवसेसं । तो तुच्छकिच्छभोयणभावाओ वुड्ढभावाओ ॥ १५ ।। जाओ सो तणुयतणू, तं दट्टुं खुड्या वि चितंति । न कयं सुंदरमम्हेहिमागया गुरु-10 किलेसकए ॥ १६ ॥ गरुई गुरूण चिंता, अन्नं भोयणगई गवेसामो। अंतद्धाणकर जं, तमंजणं जोइयं तेहिं ॥ १७ ॥ अह सूरिमणापुच्छिय, भोयणसमयंमि चंदगुत्तस्स । विहियंऽजणा पविट्ठा, न य दिवा कहवि केणावि ॥ १८ ॥ लग्गा मोत्तुं सह पत्थिवेण पज्जत्तिमागया जाव । पइवासरंपि एवं हि, तेसु भुंजंतएसु निवो ॥ १९ ।। अच्छिन्नछुहो तुच्छीभूओ देहेण पुच्छिओ भणइ । अज्ज न नजइ केणावि, मज्झ निजइ सयाऽऽहारो ॥ १२० ॥ विरसमवसेसमावेइ, मज्झ भोगंमि तो वितक्केइ । चाणक्को एसो खलु, दुब्भिक्खसुदुक्खिओ कालो ॥ २१ ।। ता कोइ छन्नरूवो, थाले एयस्स भुंजएऽवस्सं । अह सुहुमिट्टगचुन्नो, भोयणसालंगणे खित्तो ।। २२ ।। तेणऽन्नदिणे ताणं, पविसंताणं पयाणि जायाणि । चाणक्केणं दिवाणि, दीसए न उण कोइ नरो ॥ २३ ।। दारनिरोह काउं, धूमो तो वाहवाहगो विहिओ । जायाई अंसुसलिलाउलाई लोयस्स नयणाई ॥ २४ ॥ तक्खणमुत्तिन्नंऽजणजोगा ते दोवि खुड्गा दिवा । चाणक्केण सलज्जेण, पेसिया तो सवसहीए ॥ २५ ॥ एएहिं अहं विट्टालिओत्ति लम्गो दुगंछियं निवई।
IN|॥ ३६०॥ भणिओ तिदंडिणा भीमभिउडिउब्भडनिडालेण ॥ २६ ।। अज्ज कयत्थो जाओ सि, सुद्धवंसुब्भओ य तं अन्ज । जं बालकालपालियवएहिं एएहिं सह जिमिओ ॥ २७ ॥ गंतूणं गुरुपासे, सीसोपालंभमाह चाणको । जा ता गुरुणा भणिओ, तइ सासणपालगे
गुरूण चिंता, अन्नं भोयणा गाण, तं ददर्छ खुड्या वि चितति जए जमवसेसं । तो तुच्छाक
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