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उपदेशमालाविशेषवृत्तौ
चन्द्रगुप्तचाणक्यकथा।
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त्थेव पुरे लग्गा, चुक्का चोरिक्कयं काउं ॥ ८८ ॥ मग्गइ चोरग्गाहं चाणको ताण मूलमुद्धलिउं। नगरबहिं नलदाम, कोलियमालोयइ कयाइ ।।८९।। सो किल पिवीलिगाए, पुत्ते डकमि कोवकूरमणो। तदुवरि पिवीलिंगाणं, हारीमूलं निहालित्ता ॥९०।। तासि बिलं कुसीए, खणित्तु तणदहणदाणओ डहइ । एयादन्नो न खमो, मचिंतियसाहणे कोई ॥९१।। एवं तिदंडिणा चिंतिउं, स सद्दाविओ निवसमीवे । कुसुमपुराऽऽरक्खपयं, दिन्नं वीसासिउं तेण ॥ ९२ ॥ विसभोयणदाणाओ, चोरा ते मारिया कयं नगरं । निच्चोरिक कप्पडियगत्तणे पाविया भिक्खा ।। ९३ ॥ गामे न जत्थ चाणक्कएण तिक्खं सआणमिच्छंतो। आएसमेरिसं तत्थ, देइ अंबेहिं वंसाण ॥ ९४ ॥ कायव्वा वाडी चिंतियं च, गामेल्लएहिं कहमेयं । जुज्जइ कहगपमाओ, नउ एसो राउलाऽऽएसो ॥ ९५ ॥ तो वंसे छिदित्ता, साहारत्तरूण निम्मिया वाडी। विवरीयाऽऽणाकारित्तदूसणं तो पयासित्ता ।। ९६ ॥ वारनिरोहेण पलीविऊण गामो सबालवुडूढो सो। दड्ढो दुवियड्ढमइत्तणेण चाणक्कपावेण ।। ९७ ॥ आः केयं क्रूरकर्मप्रसररसिकता पश्य तस्य द्विजातेर्यद्गोत्रीभ्रूणविप्राद्युपचितविततग्रामदाहः समन्तात् । स्वाङ्गे त्वस्योपयोगः कुशकिशलदृशी धातुरक्ताम्बरादेर्धिगूधिकोटिल्यस्य सोऽयं कटुकुटिलमतेनिर्विवादः प्रमादः ॥ ९८ ॥ कोसनिमित्तं जूयं, सतपासेहिं मंडइ कयाइ । भरिऊण रयणथालं, पुरओ पभणेइ इन्भाणं | ॥९९॥ जइ जिणइ कोइ मं तस्स, देमि रयणाण थालमहमेयं । जइ पुण जिणेमि ता लेमि, तुम्ह पासाओ दीणारं ॥ १०० ।। इय जंतपासपाडण-पओगओ संचियं धणमणप्पं । एय उवाए नाए, जूयारजणेण तस्स तहा ॥१॥ अन्नमुवायं चिंतेइ, कोसपरिवड्ढणंमि चाणको । तो नगरपहाणे भोइऊण पाएइ मज्जमहुं ॥ २ ॥ मत्तेसु तेसु निम्मरमुद्वित्ता नच्चिउं समाढत्तो। तहवि विहिणा एएणं, उद्धभुओ गाइउं लग्गो ॥ ३ ॥ दो मज्झ धाउरत्ताई, कंचणकुंडिया तिदंडं च। राया वि य वसवत्ती, एत्थ वि ता मे होल वाएहि ॥४॥ 'होल' ति नीचवादित्रिकामन्त्रणम् । अन्नो य असहमाणो, नागरओ बहुवणिजलद्धधणो। तह चेव नच्चित्रं गाइड च लग्गो भणियमेवं ॥५॥ गयपोयगस्स मत्तस्स, उप्पइयस्स जोयणसहस्सं । पए पए सयसहस्सं, एत्थ वि ता मे होल! वाएहि ॥६॥ इय एवं सव्वेहि वि, नियनियधणधन्नगोतुरंगाइ । मयपाणपरायत्तेहिं, तस्स सव्वंपि परिकहिउँ ॥ ७॥"अणुरायरंगरंगि
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॥ ३५९॥