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उपदेशमालाविशेषवृत्तौ
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देवेकभत्तिमंतो वि। अस्थमइ इय विडंबेण, सेणिओ ही विहिविलासो ॥ ९३ ॥ अपि च-" छित्त्वा पाशमपास्य कूटरचनां भक्त्वा बलाद्वागुरां, पर्यन्ताग्निशिखाकलापजटिलान्निर्गत्य दूरं वनात् । व्याधानां शरगोचरादतिजवेनोत्प्लुत्य धावन्मृगः, कूपान्तः
कोणिकपतितः करोतु विधुरे किंवा विधौ पौरुषम् ।। ९४ ॥ मरिऊपणा पढमपुढवीए, पत्थडे पढमयंमि सीमंते । चुलसीइवाससहसाउ
नरकसंजुओ नारओ जाओ ॥९५॥ उव्वट्टिऊण तत्तो, भाविचउव्वीसिगाइ आइगरो। नामेण पउमनाभो, होही भारहसिरोरयणं ॥९६ ॥
गमनम्। काऊण कोणिओ मच्चुकिञ्चमच्चंतसोयतत्ततणू । वसिउ सक्कइ रायग्गिहमि नो जाव ताव नवं ॥ ९७ ॥ कारइ चंपपुरिवर-लक्खणचंपयमहीए तत्थ ठिओ। हरिरहकुंजरपाइक्क-उकडं रज्जमवइ सया ॥ ९८ ।। बलसामगिमुदमां, पेक्खंतो अप्पणो पुण कयाई। अलियाभिमाणनडिओ चडिओ अहिमाणहथिमि ॥ ९९ ॥ निसुणइ कयाइ सामिस्स, देसणं जह स पावजीवाणं । होइ अहे पुढवीसु, उत्पत्ती सत्तसु सया वि ॥ ४००॥ पभगेइ कोणिओ कत्थ, पेच्च होही महेस! उप्पत्ती। भणियं पहुणा छद्रीए, चेव तं जासि पुढवीए ॥१॥
कोणिकः-किं नाम सत्तमीए, न गमिस्समहं कुओ वि किं ऊणो । स्वामी-जंति तहिं खलु चक्की, महापरिभाहमहारंभा ॥२॥ कोणिकः-किमहं चक्की न भवामि, सामि !
स्वामी-नियमा न होसि तं चक्की । चउदसरयणा छक्खंड-भरहसामी य ते टुति ॥ ३ ॥ रयणाणि चउद्दस-कारिमाणि तो कुणइ कुंजराईणि । साहियदाहिणभरहद्ध-उध्धुरो दुद्धरो य दढं ॥४॥ पसरइ उत्तरभरहद्ध-सिद्धिबद्धाभिसंधिणा धणियं । तिमिसगुहाए दुवारे, कयमालं आलवेइ सुरं ॥ ५॥ अमर ! अविग्धं सिग्धं, उग्घाडसु उत्तरद्धसिद्धिमुहं । तेरसमोऽहं चक्की, उइन्नो किं न तं मुणसि ॥ ६ ॥ भणियमणेणं ओसप्पिणीए दो छक्क चक्किणो हुंति । ते य अईया ता कोऽसि, होसि मत्तेण चित्तेण ॥७॥ INI
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