________________
उपदेशमालाविशेषवृत्तौ
श्रेणिकपश्चत्वम् ।
Mi, जारिसो मह उदायातमचमक्कियचित्तेणे, तणन
॥ ३५२॥
पिउवेरिणो तुहोवरि
॥ ७२ ॥ मरयमिस्स नीरस्स, तस्स पाणादवेयणा किंचि । न कसापहारपीडं च, वेयए चित्तदुक्खं च ॥ ७३ ॥ अह कोणियनरनाहो, कयाइ पउमावईए अंगरुहं । काउमुदाइकुमारं, उच्छंगे जिमइ जा ताव ॥ ७४ । सो मुत्तइ थाले, चालिओ न पीडाभएण नरवइणा । अवणित्तु मुत्तमीसं, भत्तं भुंजेइ जं सेसं ॥ ७५ ॥ तो भणइ निवो अम्मो !, अन्नस्स वि कस्सई पिओ एवं । भुवणे तणुब्भवो अस्थि, जारिसो मह उदायित्ति ॥ ७६ ।। भणियं तीए दुजम्मजाय ! जागेसि किं पितं न धुवं । जो तायस्स तुहो. वरि, नेहो लेसो वि तस्स न ते ॥ ७७ ॥ सुचमक्कियचित्तणं, तेणुत्तं घडइ कहमिमं माए । गुलपप्पडिया अज्जवि, पिउपविया न पम्हुसइ ॥ ७८ ॥ जणणी भणेइ पुत्तय, ! धुत्तुरो उत्तरेइ नऽज्जवि ते । पिउवेरिणो तुहोवरि, वियंभियं इय महच्चेव ॥७९॥ बालत्तणमि अइपीडियाए कोणंगुलीहिं किमिएहिं । न खणंपि हु विरमंतो, तं उम्मुहरोइयव्वाओ ॥ ३८०॥ दुगंधविरुद्धं तारिसंपि तं तुज्झ उज्झइ न ताओ। नियमुहकुहराओ जाव, ताव पीडा पसममेइ ॥ ८१ ॥ उवरयरोइयमुच्छंग-संगयं सो सया | धरिंसु तुमं । इय तेण तस्स विहियस्स, साहु विहियं कयग्य ! तए ॥ ८२ ॥ उवयारे उवयारं, अवयारे जो करेइ अवयारं । कयपडिकियववहारो, तस्सेसो कावि न पसंसा ।। ८३ ॥ अवयारे उवयारं, उवयारे जो कुणइ अवयारं । तं सुपुरिसाग अह, कुपुरिसाण नूणं सिरोमणिणो ॥ ८४ ॥ अह सहसा उवसंतंमि, वेरभावंमि भावए निवई। अहह हयासेण मए, तावो वि विडंबिओ एवं ॥ ८५ ॥ सयमेव तत्थ गंतूण, लोहदंडेण ता इमेण लहुं । सयखंडीकाउं संकलाइ खामेमि तायमह ।। ८६ ।। करकलियलोहउइंडदंडओ जाव जाइ सो ताव । कहियं पाहरिएहिं, पहुणो जइ एउ उत्तालो ।। ८७ ।। पहरणविहत्थहत्थो, अज अणजो इओ सुओ तुम्ह । इय सोऊणं सेणियनराहिवो चिंतए एवं ॥ ८८ ॥ केणवि दुम्मारेणं, मारिस्सइ अन्ज मं महापावो। गंठीओ तालउडं तो, छोडेऊण भक्खेमि ॥ ८९ ॥ तह विहिए सो पत्तो, तं निच्चेटुं निरिक्खिय खणेण । तज्जीवियं व भंजइ, आयसनिग डाई निविडाई ॥३९० ॥ जंते तंते मंते, महोसहे मूलिया पउंजंतो। तं पंचत्त पत्तं, पेक्खिय धाहाओ मेल्लेइ ॥ ९१ ।। अइदुम्मणस्स कालो, वोलीणो संपयं सिणिद्धमणे । मइ सइ पिया पलीणो, हहा महापावपरिवाडी ॥ ९२ ।। खायगसम्मदिट्ठोवि, देव
| ॥३५२ ॥