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तितलिपुत्रप्र
उपदेशमालाविशेषवृत्तौ ॥ ३३२॥
जा उत्थुडंकिए
भक्सडत्ति । पविसईत जाया सुतुच्छ
णुभावेण ॥ ३२ ॥ न कुणइ कयाइ धम्म, नामपि सुहाइ तस्स नावस्सं । ता आगंतुं तं सो, पडिबोहइ पोट्टिलादेवो ॥ ३३ ॥N
10 पोट्टिलया जाणइ नरनाहपसाय-वायवाउलमणो न बुज्झेही । विप्परिणामेमि तओ, मणं निवाईण सव्वेसि ॥ ३४ ॥ जाव पभाए पत्तो, मंती परिसाए पायवडणत्थं । ता होइ पराहुत्तो, राया रोसारुणो संतो ॥३५॥ परियचिऊण पणमइ, स जाव ताव ठाइ अन्नओ
तिबोधनम् । निवई। चरणग्गे लग्गइ जाव, कंपिरो उदइ निवो तो ॥३६॥ अह संभंतो पत्तो, पुरओ पत्थिवपहाणपुरिसाणं । ता ते वि तस्स जाया, परम्मुहा किंपि जंपेउं ॥ ३७ ।। नियगेहगओ पेक्खइ, पुत्तकलत्ताइपरियणमसेसं । जा उत्थुडकिएणं, मुहेण ता इच्छए मरिउ ॥ ३८ ॥ तालउडविसं भक्खइ, अमयं पिव तस्स तं परिणमइ । उदरं दारइ छुरियाए, साऽवि मालव्व से जाया ॥३९॥ उब्बंधणाइ बंधइ, गलपासं सोवि तुट्टइ तडत्ति । पविसइ पज्जालियतणकुडीवि वाविव्व से सा वि ॥४०॥ झंपावइ वावीए, अत्थाहजलाए बंधिऊण गले । सुविसालसीलं तो सावि, झत्ति जाया सुतुच्छजला ॥४१॥ इय नयराओ नीहरइ, जाव ता अग्गओ गरुयगड्डा । पासेसु दोसु दो रक्खसा य अणुधावए हत्थी ॥ ४२ ॥ इय अइसकडकूडावडिओ जमदाढगाढगहिओव्व । सुमरेइ पुव्वपडिवन्नपेसलं पोट्टिलाभज ।। ४३ ॥ इय वसणविसन्ने किंतु, पोट्टिले! मइन देसि दरिसावं । मह दुक्कयउदयाओ, वीसरियं (सं) मन्नियं पि सयं ॥४४॥ एत्यंतरे निरंतरसिंगारागारभूयरूवधरी । होऊण पोट्टिला पायडेइ तियसो स अप्पाणं | ॥ ४५ ॥ सचिवो भणेइ पालसु, वसणे में पडियमप्पडियारे । अहव तहा कुणसु पिये !, झत्ति पलायति मह पाणा ॥ ४६॥ पभणइ पोट्टिला पाणनाह ! पावं पवंचियं तुमए । जं रजकजसज्जेण केवलं तस्स फलमेयं ॥४७॥ जइ संपर्यपि पवज्जउज्जमं कुणसि पावपलयकए । ता एय दुक्खमोक्खो, न केवलं होइ मोक्खो वि ।। ४८ ॥ परिपालियपव्वज, जाया देवत्तणे अहंपि तया। तुह पडिबोहं साहेउमागया मा चिरावेसु ॥४९॥ इय तव्वयणं पडिवजिऊण मंती भणेइ साहुकयं । किं पुण कहंतु पुच्छे (सिमि,
॥३३२॥ पत्थिवं एव मइ कुवियं ॥५०॥ उवसंहरिया माया, तत्तो तिअसेण तेण जा ताव । कणयनरिंदो तत्थेव, आगओ मंतिमणुणे ॥५१॥ इय मह महाऽवराहो, मईमहामोहखोहसंजणिओ। तइ खमियब्वो, सव्वो, अब्बो चित्ते न धरियव्वो ॥५२ ।। अह
अइसकडकूडावा
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वन्नपेसास दोस दो रखाल तो सावि, मजालियतणकुडीवर दारइ छुरिया
मह दुक