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उपदेशमालाविशेषवृत्ती
| कमलामेला अहं न मूढोऽसि । कमलामेलोऽम्हि अहं, सागरचंदेण तो भणियं ॥ १९ ॥ ज मेलसि मह कमलं, कमलामेलो त्ति तेण तं होसि । इअ निच्छओ कओ मे, अलमन्नोवायचिंताए ॥ २०॥ अंगीकरेइ नो जाव, एयमवरेहिं तो कुमारेहिं । मय- IN गृहिवतदाय विवसो काऊणं, ऊरीकाराविओ संबो ॥ २१ ॥ अवगयमओ विचिंतइ, कह अघडतं इमं घडावेमि । इय अवगयअन्नाओ, ताओ कमलामेलामारिस्सएऽवस्सं ॥ २२ ॥ तहवि मए पडिवनं, कायव्वमिमं ति होउ जं होइ । परिणयदिणमि पत्ते, पन्नत्ती सुमरियाऽणेण ॥२३॥ सागरचन्द्रभणिया विवाहलगं, जह साहइ सागरो तहा जयसु । पउणीकरेसु परिणयसामग्गिं अज्ज उजाणे ॥ २४ ॥ तव्वयणाणंतरमेव,
कथा। तीए नवरंगघट्टसुविसट्टा । कयकुंकुमंगरागा, सुवासिणीओ अणेगाओ ॥ २५ ॥ कप्पूरपूरकुंकुम-कुसुमागरुपूगनागवत्ताई। मयणाहिचंदणाई, तहा कयं पउणमखिलंपि ॥ २६ ॥ संबकुमारो दुद्दमकुमारपरिवारिओ तहिं पत्तो। कयसंकेया समए, कमलामेला सुरंगाए ॥ २७ ॥ एगागिणी वि सहिया सागरचंदाणुरायरंगेण । सयमारामे पत्ता, परिणीया सागरवरेण ॥ २८ ॥ अह पिउघरंमि कमला, जोइज्जइ जाव दीसइ न ताव । लग्गसमयंमि लोओ, धसक्किओ हा किमेयंति ।। २९॥ वरजत्ताए पत्ता, ससुराइ मायतायभायाई । अइरुक्खा सुविलक्खा, खणेण जाया महादुक्खा ।। ३० ॥ घरपुरबहिरुजाणेसु, जाव जोयंति जायसोयभरा । विज्जाहररूवधराण, ताव कुमराण खयरीण ॥ ३१ ॥ मज्झगया सा दिवा, परिणीया खेयरेण एगेण । कयमयणहलालंकार-कंकणाघट्टजुयलजुया ।। ३२॥ हरिसविसायवसेहिं, कहिया कण्हस्स कहवि अवहरिया। लग्गसमयंमि खयरेहिं, देव ! तुह एरिसी आणा ॥ ३३ ॥ अच्छइ उज्जाणम्मी कमलामेला मिलंतखयरोहा । सेणासामम्गीए सयं, गओ तो तहिं कण्हो ॥ ३४ ॥ उवसंहरियाउ सुवा-सिणीउ सुविलासमासला तत्तो। कुमरेहिं वि उम्मुकं, खयरजुवाणाण नेवत्थं ॥ ३५ ॥ चेलंऽचलेहिं दोन्निवि, अन्नोन्नं संजमित्तु संबेण । पुरओ काउं कमलामेलं तह सागरकुमारं ॥ ३६ ।। दुदंतकुमरमंडलमंडियपासेण पणमिओ कण्हो। ओलक्खिय सुविलक्खो , आइक्खइ सिक्खवेउमिमं ॥ ३७॥ रे रे दुद्दम अइदुद्व !, घिटु अविसिटुचिट्ठ को एसो। सेवगजणे वि एवं, नहसेणे वंचणारंभो ।। ३८ ॥ ता किं करेमि तुह अज्ज, मज्ज तणओ वि एवमनयनिही । ता तमवस्सं निस्सारयामि इय कुमरपरि
॥३१ ॥
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