________________
उपदेशमालाविशेषवृत्तौ|
अनुमोदने बलदेव-मृग | रथकार
कथा।
॥ २९४॥
ददानो बलदेवतपः-संयमानुमोदको यथा वा तद्दानानुमोदको मृगः । यथा च तपःसंयमरूपमात्महितमाचरन् बलदेव इति ॥१०८॥ भावार्थः कथानकगम्यस्तच्चेदम्___जह बारवइपुरीए, रिसिणा दइढाए झत्ति निगंतुं । दुव्वारदुक्खदावग्गि, दूमिया गग्गिरगिरा य ॥ १॥ समरे पराभवेऊण हत्थिकप्पमि अच्छदंतनिवं । पत्ता कोसंबवणंमि, रामदामोदरा दोवि ॥२॥ पाणीमाणयणकए, बलदेवो दूरदेसमणुपत्तो । सुत्तो सउरी चरणे, जराकुमारेण जह विद्धो ।। ३ ।। जह पढविओ कोच्छुहमप्पिय हरिणा स पंडुमहुराए। तह नेमिनाहचरियाओ, नेयमिह वित्थरस्थीहिं ॥ ४ ॥ अह असउणखलणाए, पए पए संकिओ सकम्माण । बलदेवो संभंतो, तुरियगई तत्थ संपत्तो ॥५॥ पेच्छिय तं तवत्थं, चिंतइ समिओ त्ति सुयओ तावेसो। पडिबुद्धं पाइसं, जलं ति संठवियजलपुडओ ॥ ६ ॥ जा जोयइ मुहमेसो, ता पेक्खइ कसिणमक्खियाऽऽवरियं । हा दुन्निमित्तमेयं, किर किं ति चम(धस)क्किओ हियए ॥ ७ ॥ पडिबोहिओ वि कहवि हु, जाव न जंपेइ ता मयं नाउं । उम्मुक्कमहानाओ, बलदेवो रोइउं लग्गो ॥ ८ ॥ वाहो वा सुहडो वा, जो कोइ वणे स होउ मह पुरओ। जेणेस सुहपसुत्तो, विद्धो पायंमि महभाया ॥ ९॥ बालं वुड्ढं समणं, नारिं सुत्तं पमत्तमहमत्तं । पहरंति न सप्पुरिसा, ता नूण स कोइ काउरिसो ॥ १०॥ तो पयडउ अप्पाणं, पोरिसवायं व चत्तमज्जाओ। जेण भडवायजणियं, भंजेमि मरट्टमखिलंपि ॥ ११ ॥ हा कन्ह ! कन्ह ! बंधव ! कत्थ गओ ? पसिय देसु पडिवयणं । अवरद्धं न कयावि हु, तुज्झ मए कहणु मह रुटो ।। १२ ॥ पेम्ममकित्तिमेयाणमलियमेयं पि संपयं जायं । अन्नह कह तुह मरणे, अहमिय जीवामि निल्लज्जो ॥ १३ ॥ मोडइ हत्थे तोडइ, सिरोरुहे भिडइ रुक्खमूलंमि । ताडइ वच्छं फोडइ, महीयलं पन्हिघाएहिं ॥ १४ ॥ खणमेगं पवियंभइ, खणं निरंभइ निरंतरुसासे । नियदिव्वमुवालंभइ, परिरंभइ मयगकन्हतणुं ।। १५॥ उग्गायइ खणमेगं, खणमेगं रुयइ | हसइ खणमेगं । खणमेगं च पणच्चइ, वच्चइ खणमेगमन्नत्थ ॥ १६ ।। कइयावि मोहवसगो, पलवइ असमंजसं असंबद्धं । कइया वि हु गुणनियरं तं तं सरिऊण रोएइ ।। १७ ।। वक्ति चान्योक्त्या-" यद्भग्नं धनुरीश्वरस्य शिशुना यज्जामदग्न्यो जितस्त्यक्ता
॥२९४॥