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उपदेशमालाविशेषवृत्तौ
॥ २९२॥
मे सासया बुद्धी ॥ ९॥ समणा तिदंडविरया, भगवंतो निहुयसंकुचियगत्ता । अजिइंदियदंडस्स उ होउ तिदंडं महं चिंधं ॥ १०॥
| यथावस्थित लोइंदियमुंडासंजयाओ अहयं खुरण ससिहाओ। थूलगपाणिवहाओ, वेरमणं मे सया होउ ॥ ११ ॥ इय न्हाणछत्तरतंबराइ निय
धर्ममकथने मइवियप्पियकुलिंगो। सुहसीलो सो पढमं पारिव्वज पवत्तेइ ॥ १२ ॥ अह तं पायडरूवं, दट्टुं पुच्छेइ बहुजणो धम्मं । कहइ
मरिचिय जईण तो सो, वियालणे तस्स परिकहणा ॥ १३ ॥ यथा-एसो च्चिय परमत्थो, परमत्थपसाहओ य जइधम्मो। तदसत्तेण
IN बोधिनाशः। मए पुण, इय वेसविडंबणा विहिया ॥ १४ ॥ धम्मकहा अक्खित्ते, उवट्टिए देइ सामिणो सीसे । गामनगराइएसु य, विहरइ सो | सामिणा सद्धिं ॥ १५॥ पुच्छइ कयाइ तायं, भरहो भरहाहिवो समोसरणे । जिण-चकि-दसाराणं, वन्नाइ कहेइ भयवपि ।।१६।।
अह भणइ नरवरिंदो, ताय ! इमे संतियाए परिसाए। अन्नो वि कोवि होही, भरहे वासंमि तित्थयरो ? ॥ १७ ॥ तत्थ मिरीई नामं, आइपरिव्वायगो उसभनत्ता । सज्झायझाणजुत्तो, एगंते झायइ महप्पा ॥ १८॥ तं दाएइ जिणिदो, एव नरिंदेण पुच्छिओ संतो । धम्मवरचक्कवट्टी, अपच्छिमो वीरना(हो)मो त्ति ॥ १९ ॥ आइगरो दसाराणं, तिविठु नामेण पोयणाहिवई । पियमित्तचक्कवट्टी मूयाए विदेहवासंमि ॥ २०॥ तं वयणं सोउणं राय अंचियतणुरुहशरीरो। अभिवंदिउण पियरं, मरीइमवंदिउं जाइ ॥ २१ ॥ सो विणएण उवगओ, काउण पयाहिणं च तिक्खुत्तो। वंदइ अभिथुणतो, इमाहि महुराहिं वग्गुहिं ॥ २२॥ लाभा हु ते सुद्धा, जंसि तुमं धम्मचकवट्टीणं । होहिसि दसचउदसमे, अपच्छिमो वीरनामो त्ति ॥ २३ ॥ आइगरो दसाराणं तिविठु नामेण पोयणाहिवइ । पियमित्तचकवट्टी, मूयाए विदेहवासम्मि ॥ २४ ॥ नवि ते पारिव्वज, बंदामि अहं इमं च ते जम्मं । जे होहिसि तित्थयरो, अपच्छिमो तेण वंदामि ॥ २५ ॥ एवं तं थोऊणं, काऊण पयाहिणं च तिक्खुत्तो। आपुच्छिऊण पियर, विणीयनयरिं अह पविट्ठो ॥ २६ ॥ तं व्वयणं सोऊणं, तिवई अप्फोडिऊण तिक्खुत्तो। अब्भहियजायहरिसो, तत्थ
| ।।२९२॥ मिरीई इमं भणइ ॥ २७ ॥ जइ वासुदेवपढमो, मूयविदेहाए चक्कवट्टित्तं । चरिमो तित्थयराणं, अहो अलं एत्तियं मज्झ ॥२८॥ | अयं च दसाराण, पिया य मे चकवट्टिवंसस्स । अजो तित्थयराणं, अहो कुलं उत्तम मज्झ ॥ २९ ॥ पुच्छंताण कहेइ, उवट्टिए
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