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उपदेशमालाविशेषवृत्तौ
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। सत्तमदिवस हा मह भूरिवरिलायउमड-कवाडमामलाई चितति ।।५।।
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अपि च-यज्ञेष्वालभ्यमानस्य पशोश्चित्तमुत्प्रेक्ष्याऽवाचि विवेचकैः
कालिकाचार्य नाहं स्वगोपभोगतृषितो न प्रार्थितस्त्वं मया, सन्तुष्टस्तृणभक्षणेन सततं साधो ! न युक्तं तव ।
| दत्तराज्ञोः स्वर्ग यान्ति यदि त्वया विनिहिता यज्ञे ध्रुवं प्राणिनो, यज्ञं किं न करोषि मातृ-पितृभिः पुत्रस्तथा बान्धवैः ॥ ३७॥ यज्ञविषयक
प्रभोत्तराणि। तत्तो दत्तो कुविओ, पभणइ माउलग ! मा लवसु अलियं । बहुजन्नकारिणो मह, वासो वइकुंतसगंमि ॥३८॥ अह आह गुरु पसु-पुरिस-नारिमारिं करित्त जन्नेसु । मरिऊण सत्तरत्तंतरंमि नरयमि जासि तुमं ॥ ३९॥ को पच्चउत्ति वुत्ते, तेण गुरु वजरेइ निव ! एत्तो । सत्तमदिवसे आसे, पविसिस्सइ तुह पुरिसं ति ॥ ४०॥ तम्मारणतल्लिच्छो, पुच्छइ सो त मरेसि कमि दिणे । भणइ गुरू परियाओ, होही मह भूरिवरिसाई ।। ४१ ॥ तो सो तं अप्पइ अप्पणिज्जपाइकचक्कधरणाय । सत्तदिणते मत्थयमवस्समेयस्स छिंदिस्सं ॥ ४२ ॥ अइनिबिडजडियउब्भड-कवाडमतेरं पविट्ठो तो। पडिवालइ मज्जाय, तं गयघडघडियपरिवेढो ॥ ४३ ।। जियसत्तु पुवपत्थिववसीकया दत्तनिवइनिम्विन्ना । सामंताई चिंतंति, पुव्वभूवं पए ठविउ ॥ ४४ ॥ उत्तालचित्तवित्ती, सत्तमदिवसे वि कालगगुरुं सो। निग्गहिउमप्पणा चेव, झत्ति निग्गंतुमीहेइ ॥४५॥ सोहावियंमि रायप्पहमि रक्खा-|| विए य पत्तीहिं । मालागारो वच्चं, काउं ढकेइ कुसुमेहिं ।। ४६॥ सामंतमंतिमंडलबहूहिं परिवारिओ तओ जाव । सो जाइ
रायवाडीए, मारिउ माउलाऽऽयरिउ ॥ ४७ ॥ तावासवारतुरयक्खुरग्गउक्खित्तियाए झत्ति मुहे । विट्ठाए पविटाए, चिंतइ स चमक्किओ एवं ॥ ४८ ॥ जाओ सव्वो सो ताव, पञ्चओ ता किमज मरियव्वं । इय अकहिऊण वलिओ, सामंताईण सहसत्ति ॥४९॥ तो ते चित्तबुद्धा, नाओ मंतोऽम्ह नूणमेएण । तावाऽजवि पविसइ, न राउले ताव गेन्हामो ।। ५० ॥ इय गहिओ
| ।। २९०॥ विग्गहिऊण, तेहिं हत्थे पलायमाणो वि। जियसत्तू पुत्वपए, निवेसिओ आणिऊण तहिं ॥५१॥ तुरमिणिदत्तो तो पढमढोयणीयं इमेहिं तस्स कयं । तेण वि दुम्मारेणं, मारेउं सो समाइटो ।। ५२ ॥ निगडिय तत्तो खित्तो, अंतो ठियदुद्रपुटुसुणयाए ।
पुव्वपस्थिवव माइनिबिडजडियउभड-कवा सो त अप्पइ अप्पणिया
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