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उपदेशमालाविशेषवृत्तौ
॥ २८५॥
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चउजाम-धम्मधारी चउन्नाणी ॥४॥ चित्तेण मंतिणा वंदिऊण तं धम्मदेसणा निसुया । बझंति य मुसु)झंति य, जह जीवा भवसमुद्दम्मि ॥५॥ अट्टवसट्टोवगया, अणोरपारं भवं भणति जहा। जह संमत्तं सत्तममुत्तमबुद्धी पवजंति ॥ ६॥ जह निम्म- N| गुरुपर्युपालनाणगुणा, संजमनिरवज्जरजमजिति । जह सुसइ सच्च(व्वोनिव्वण-तवेण रुद्धो भवसमुद्दो ॥ ७ ॥ तह एस देसणाए, पडिबुद्धो स्तिफले सचिवो। समणोवासयधम्मं रम्मं सम्मं समजिंसु ॥८॥ पारगयपायपूया, पवित्तपत्ताइ दाणझाणाई । सासणपभावणाओ, भावओ
प्रदेशिनृपसंपवत्तेइ ॥९॥ संसाहिय सामिपओयणो य सो पट्टिओ नियपुरीए । चिंतइ गुरु वि जई तत्थ, इंति तो होइ अइलटुं ॥१०॥ दृष्टान्तः। हिंसामुसापसत्तो, स पएसिमहानरेसरो मज्झ । महु-मंस-मज्ज-जूयाइउज्जओ कहवि जइ बुज्झे ॥ ११ ॥ मइमित्ते अइभत्ते, | मंतिमि महाहिओवएसपरे । हा पाविस्सइ पावप्पहावपहओ निरयपडणं ॥ १२ ॥ इहलोयकजसजा, मित्ता मंती य हुंति बहु. । यावि । पहुणो परलोयपसाहणुज्जया जे उ ते विरला ॥ १३ ।। सिरिकेसिपहुं ता विन्नवेमि सेयविपुरीविहाराय । जइ नाम धम्मकम्ममि, उम्महेज्जा महीसो वि ॥ १४ ॥ इय विन्नत्ता साहिति, सूरिणो वट्टमाणजोगो त्ति । सुविहियविहारचरियाए, अवसरे तं पुरि पत्ता ॥ १५ ॥ अवगयनियगुरुआगमणवइयरो मंतिपुंगवो दाउं । वद्धावयस्स वरपारितोसियं तो समयसुत्ती ॥ १६ ॥ सव्वाए रिद्धोए वंदणवडियाए जाइ वंदेवि । चिंतिय नाहियवाई, आणेयव्वो कहेह निवो ॥ १७ ॥ कइयाइ तुरंगमवाहियालिनिस्समपरिस्समसमाय । सचिवेण निवो नीओ, गुरुवसही साहिछायाए । १८ ।। पुरओ परिसाए पयासमाणयं धम्ममिक्खिऊण गुरुं । मंति पुच्छइ निवई, किमेवमारंडई मुंडोत्ति ॥ १९॥ पभणइ चित्तो जाणामि, नाह ! नाहंपि किपि तो पासे । गंतूणं पुच्छिज्जइ, सक्केइ किमुत्तरं दाउं ॥ २० ॥ अविहियपायपणामो, पासे गंतु गुरूणमुवविट्ठो। पडिहणइ जीवकम्माई, पेञ्चलोयं च सिच्छाए |y ॥ २१ ॥ “वराकः स कथं नाम, नम्रीभवतु दुर्जनः। आपादात् मस्तकं यावत् , स्थिता यस्य कुशीलता ।। २२ ।।" अह मुणिनाहो ऊसास-सह-चिट्ठाहिं साहए जीवं । तरुसिहरम्गपडाया-पकंपलिंगेहिं अनिलं व ॥ २३ ॥ तथा-जो तुल्लसाहणाणं, फले
[6] ॥२८५॥ विसेसो न सो विणा हेउं । कजत्तणओ गोयम ! घडो व्व हेऊ य से कम्मं ॥ २४ ॥ एवं जीवे कम्मे य, साहिए सोहणा