________________
उपदेशमालाविशेषवृत्तौ
॥ २७५ ॥
जे सहइ तरस गिरिणो सीसे, सीमंतओ व्व निस्सीमो । भणिओ पुणोवि कंचणपायारं कुणइ रायगिहे ॥ ५७ ॥ पुण भणिओ रयणायरमाणे इहेव जेण तत्थ धुवं । कयण्हाणसुद्धिणो तुह सुयस्स नियकन्नयं देमो ॥ ५८ ॥ खणमेत्तेणं तेणं, बाहिं रयणायो समाणीओ । मज्जाविय मेयज्जं, रन्ना दिन्ना सकन्ना से ॥५९॥ तीए सह सिवियाए, आरूढो जाव जाइ पुरमज्झे । पत्ताओ पत्तीओ ता, ताओ वि अट्ठ तत्थेव ॥ १६० ॥ नरवइसमप्पिए परमचंगसिंगेसु तुंगपासाए । नवनवविलासपेसल - नवनवबहुयाहिं सह ललइ ॥ ६१ ॥ भुंजइ बारसवरिसाई, ताहिं सद्धि अभंगुरे भोगे । पुव्वपडिवन्नमागम्म, तं सुरो संभरावेइ ॥ ६२ ॥ पायपडियाओ ताओ, कंताओ समाओ बारस पुणोवि । तियसरस तस्स पासे, मग्गति सुदीणवयणेहिं ॥ ६३ ॥ संसारुद्धारमई- बहुबहु उवहसीलया दोवि । कट्टोयट्टि हियए, कुर्णाति तियसस्स तस्स तथा ॥ ६४ ॥ पुण बारसवरिसेसुं, दिन्नेसु सुरेण भोगमइए | तेसु वि अइच्छिएसुं, मेयज्जो जइवरो जाओ || ६५ ॥ नवनवपुव्वमहत्थो, गीयत्थो तिब्बतवथिरो जाओ । स याि विहरमाणो, एगल्लविहारपडिमाए ॥ ६६ ॥ रायगिहे संपत्तो, गोयरचरियाए हिंडमाणो य । भवणंगणंमि पत्तो, एगस्स सुवन्नागाररस ॥ ६७ ॥ घडिउं स तंमि समए, कणयमयाणं जवाणमट्ठसयं । तत्थेव ठाविऊणं, नियभवणऽभंतरे पत्तो ॥ ६८ ॥ केलिसकुंतएणं, चुणंतएण कुंचेण तत्थ ते गिलिया । उद्घट्ठिएण दिट्ठो, मेयज्जेणं गिलिजंता ॥ ६९ ॥ खणमेत्तेणं पत्तो, सुवन्नगारो न जा ते नियइ । ता भयभीओ पुच्छइ, पासठियं तं महासाहुं ॥ १७० ॥ कहसु पसायं काऊण, केण हरिया इमे सुवन्नजवा । अं तुभे जाणिस्सह, इह चैव चिराउ चिता ॥ ७१ ॥ नरनाहो जिणपडिमापूयं काऊण पइविणं पुरओ । नवकणयमयजवाणं, सण अट्ठुत्तरेणेव ।। ७२ ।। सुपसत्थ सत्थियं वित्थरेइ वंदेइ देवदेवंतो । देवच्चणियावेला, अहुणाऽइक्कमइ ता कहह ॥ ७३ ॥ माराविस्सइ सकुटुंबमेव मं अन्नहा महाराओ । ता कारुन्नं काऊण, कहसु अप्पाणमन्नं वा ॥ ७४ ॥ अहह्यं तुज्झ व अन्नस्स वावि कस्सविइ न किंपि काहामि । एत्तियमेत्तं सुवन्नं, अन्नं तुह सामि ! दाहामि ॥ ७५ ॥ किंपि न जंपर मेअज्जमुणिवरो पाणिरक्खट्टाए । जा ता भणियमणेणं, इय मिच्छा होइ चोरस्स || ७६ || कह णु कहिस्सइ एसो, तेणो सुतवस्सी वेसमलीणो ।
श्रीमेतार्यमुनिसन्धिः ।
॥ २७५ ॥