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________________ उपदेशमालाविशेषवृत्तौ ॥ २६७ ॥ साकैयपुरे चंदावडिंसओ नाम आसि नरनाहो । जिणधम्मे तलिच्छो, तल्लेसो तम्मणो चैव ॥ १ ॥ कित्ति धरित्तिओ विव पिया दो तस्स चंगअंगीओ । पढमा सुदंसणा ताणमासि पियदंसणा अन्ना ॥ २ ॥ तणओ सागरचंदो, पढमाए सागरो व्व गंभीरो । मुणिचंदोत्ति परो पुण, परकम्मे कल्लमल्लो जो ॥ ३ ॥ गुणचंद - बालचंदा, अवराए अंगया दुवे जाया । तेसिं सागरचंदो, जुवराओ राइणा विहिओ ॥ ४ ॥ मुणिचंदस्स उ दिन्ना, उज्जेणिपुरी कुमारभुत्तीए । तत्थ गओ सो पालइ, सया पयाओ पयाउव्व ॥ ५ ॥ कइयाइ महाराओ राओ अंतेरंमि चिंतेइ । जावज्जवि न पहुच्चइ, देवी ता ठामि उस्सग्गं ॥ ६ ॥ जावेसा दीवसिहा दिप्पइ तावेस होउ उवसग्गो। इय उद्धद्वाणठिओ मणिपुत्तल व्व सो सहइ ॥ ७ ॥ जामिणिजामे जाए, जाओ जा झिज्जमाणओ दीवो । ता चिंतइ चेडी, कहमिहंधतमसे पहू ठाही ॥ ८ ॥ इय कुणइ पुण पईवं, पडहच्छं सा सिणेहपूरेण । केजगहो विव दिप्पेइ, सो पुणो निश्चलग्गसिहो ॥ ९ ॥ निवई वि काउसगं, न पारएऽभिग्गहगहिओ । धम्मज्झाणपईवं, जालइ समसीस्त्रियाए व्व ॥ १० ॥ इय बीय-तीय- पहराणं, तेविहु तीए पूरिओ दीवो । रयणंकुरुव्व जाओ, चउसु वि जामेसु अविरामो ॥ ११ ॥ अइसुकुमारसरीरो, नरेसरो रुहिरभरियसव्वंगो । संजायजायणो भावणाहिं भावेइ अप्पाणं ॥ १२ ॥ जइ जीव ! जायणाए, गाढं अंगाई संगहिज्जति । तुह का तहावि हाणी, तणू जमन्ना कयग्घा य ॥ १३ ॥ जा नाम जीव ! जीवाण जायणा होइ अप्पर - । तदणंतभागमेत्ता अनंतगुणनिज्जरा एसा ॥ १४ ॥ जइजंति जंतु एए बहिरंगा अंगभंगओ पाणा । कुसलं चिय स पन्ना निव्वाहमयाण ताण जओ || १५ || दियहनिसाघडिमालं आउयसलिलं जणस्स घेत्तूण । चंदाइच्चबइल्ला काल रहट्ट भमाडिति ||१६|| जह जह अइनिबिडाए, पाणा पीडाए पाउणिज्जंति । पज्जलइ झाणजलणो, तह तह से दुरियदाहसहो ॥ १७ ॥ धी तेउ ते दिप्पंतएवि, तइ जं दसा निवस्सेसा । इय दिवयस्स कुविउव्व, तस्स अरुणो गओ उदयं ॥ १८ ॥ परिनिव्वाणे दीवे, निवोवि निव्वाणमकमेउं च । पारइ काउस्सग्गं किं पुण न चलंति अंगाई ॥ १९ ॥ उक्खणियमेत्तपाउ पडिओ पुहईए अडवडेऊण । पंचपरमेट्ठिनिम्म (पश्च) ल निश्चलचित्तो दिवं पत्तो ॥ २० ॥ तिदिवे सो संजाओ, सागरचंदो वि दारुणदुहत्तो । मयकायव्वे काऊण, श्रीमेतार्यमुनिसन्धिः । ॥ २६७ ॥
SR No.023515
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages574
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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