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उपदेशमालाविशेषवृत्तौ
॥ २६८ ॥
भाइ पियदंसणा समुहं ॥ २१ ॥ पिउ (य) रज्जधुरं धारिन्तु धारिया विव तणुब्भवा तुज्झ । तुहणुन्नाए माए, पव्वज्जमहं पवज्जामि ॥ २२ ॥ मरणावसाणसंसारसायरे सारसरणमिणमेव। हालाहलघंघलिओ, सुहारसाओ सुही होमि ॥ २३ ॥ अहो संसारजालस्य, विपरीतः क्रियाक्रमः नवरं जलजन्तूनां धीवरस्यापि बन्धनम् ॥ २४ ॥
" नानाविधं कृतकदेहभृतां समाजं, यस्मिन् प्रवेशयति कर्म्मविपाक एषः (व) । आसूत्रविस्तृतरसे भवनाटकेऽस्मिन्, विष्कम्भको भवति नाम न कोऽपि मृत्योः ॥ २५ ॥ "
पियदंसणा पर्यंपइ, धरिडं धीरो तमेव रज्जधुरं । कस (म)राण भरुव्वहणंमि, साहसं निव्वइ कहं ॥ २६ ॥ तो गुणसागरचंदो, सागरचंदो निवेसिओ रज्जे । सामंत - मंति- मंडलियसेट्ठिसत्थाहपमुद्देहिं ॥ २७ ॥ नियरजंमि अवज्जं, वज्जइ सज्जेइ सज्जणाण सुहं । धम्मं सम्मं जाणइ, अवजाणइ दुज्जणजणं च ॥ २८ ॥ करिकंधराधिरूढो, एरावणवाहणंमि सक्को व्व । नीहरइ रायवाडीए, सव्वसेणासमूद्देण ॥ २९ ॥ इय असरिस सोहाए, सा पइदियपि तं पलोयंती । मच्छरछारच्छुरिया, चिंतइ पियदसा एवं ॥ ३० ॥ इय लच्छीविच्छडो, महरिहरिद्धीए रायवाडीए । एयस्स केरिसो दो विपत्तिणो पुत्तया मज्झ ॥ ३१ ॥ अहह हयम्मि हयासा, जं रज्जं दिज्जमाणमवि तइया । न सुयाण कए अंगीकरिंसु नियदुम्मई नडिया ॥ ३२ ॥ जइ पुण पडिवज्जंती, ता मज्झवि अंगभवा एवं । रायसिरीए एयाए, साहु सोहंतया हुंता ॥ ३३ ॥ इय जणवाओ संपइ, हयाए सच्चीकओ मए चेव । “जो लेइ न दिज्जंतं, न लहइ सो मग्गमाणो वि ॥ ३४ ॥ " अज्जवि न किंपि नट्टं, गरेण मारेमि सागरनरिंदं । संकमइ अक्कमेणं, जेणेसा मह सुए लच्छी || ३५ ।। इय विहिनिच्छया सा, छलाई मग्गेइ मारणनिमित्तं । अहवा वामाणं होइ, एरिसो चेव वावारो ॥ ३६ ॥ कइयाइ रायवाडीवावडनर नाहभोयणनिमित्तं । अइसुरहिसिंहकेसरयमेगमादाय दासिवरा ॥ ३७ ॥ पियदसणाए दिट्ठो, जंती हकारिऊण भणिया य । अप्पेसु हेल्लि ! मोयगमेयं जोएमि जेणाहं ॥ ३८ ॥ विसपुव्वभाविएहिं पाणीहि परामुसित्त पुणरुत्तं ।
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श्रीमेतार्यमुनिसन्धिः ।
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