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उपदेशमाला - विशेषवृत्तौ
॥ २३८ ॥
भुत्तो सव्वेहिंवि रसेहिं ॥ ६४ ॥ मज्जिय विलेवियंगी, सव्वालंकारभूसिया राउ । पत्ता दीवगहत्था, कयत्थमप्पाणमिच्छंती ॥ ६५ ॥ चाडुपडू पारद्धा, सा तं रमिडं न सक्किउं जाव । तत्तो पसंतमोहा, सुयधम्मा साविया जाया ।। ६६ ।। रायाभिओगविरहेण, कोइ पुरिसो मए न रमियव्वो । इय सा अबंभविरई, पडिवज्जइ वज्जियवियारा ॥ ६७ ॥ उवसमिय सीहसप्पा, चउमासोवासिया समावडिया । कयकूवफलावासो, तइओ वि मुणी गुरुसगासे ॥ ६८ ॥ अब्भुट्टिया मणागं, दुक्करकारीण सागयं तुब्भं । आसासिया कमेणं, गुरुणा ता थूलभद्दो वि ।। ६९ ।। गणियागिहंमि पइवासरंपि गिन्हियमणुन्नमाहारं । भुंजतो रम्मतणू - समाहिगुणओ य संपत्तो ॥ ७०|| अइदुक्करदुक्करकारयस्स अब्भुट्टिऊण सप्पणयं । भणियं गुरुणा तव, सागयंति ते मच्छरं पत्ता ॥ ७१ ॥ तिन्निवि भणति खवगा, पेच्छह सूरीहिं केरिसं भणियं । एस अमचस्स सुओ, पसंसिओ एवमतबोवि ।। ७२ ।। पसरियरोसावेसेण, पाउसम्म समागए दुइए। सीहगुहाखवगेणं, भणिओ सूरी अहं जामि ॥ ७३ ॥ उवकोसाए गिमि, कोसावेसाए लहुगभगिणीए । तं बोहेमि, किमूणो, कोवि अहं थूलभद्दाओ ॥ ७४ ॥ वक्ष्यते चात्रैव - जइ दुक्करदुक्करकारउत्ति भणिओ जहओ साहू । तो कीस अज्जसंभूयविजयसीसेहिं न य खमिअं ? || ७५ || उवउत्तेणं गुरुणा, नायं पारं न पाविही एसो । पडिसिद्धो तहवि गओ, मग्गियलद्धाए वसहीए ।। ७६ ।। लग्गो वासारतं, काउं सा भद्दिगा सुणइ धम्मं । रइरूवधारिणी, भूसिया विभूसाए रहिया वा ॥ ७७ ॥ सो मयणगोलगो विव, जलणसमीवे तयं पलोयंतो । जाओ सिढिलियसंजमपरिणामो कामकेलिपिओ ॥ ७८ ॥ वज्जिज्जो अज्झोववन्नउ पत्थितं तयं लग्गो । निउणमईए तीए, भणिओ किं देसि ? मे कहसु ।। ७९ ।। स भणइ सुंदरि ! मे नत्थ, किंपि देयं जओ म्हि निम्गंथो । भणइ इमा ता गच्छसु,' लक्खं वा देसु तेण सुयं ॥ ८० ॥ नेवालजणवए जह, राया पुव्वस्स साहुणो देइ । कंबलरयणं सयसहस - मोलमेसो तहिं जाइ ॥ ८१ ॥ लद्धं तं तत्थ महा - पमाणवंसस्स नूमियं मज्झे । ठ (थ) इयं छिडुं जह तन्न, कोइ किंचिवि वियाणाइ ।। ८२ ।। निगिणप्पाउ जा एइ, एक्कओ विस्समं अकुणमाणो । ता कत्थवि य पसे, सउणो वासइ जहा लक्खो ॥८३॥ एसो इहेइ तुब्भं, चोरवई सउणरुयवियारन्नू । जा पासइ ता पासइ एकं चिय इंतगं समणं
तीव्रव्रतारा
धने स्थूलभद्र| मुनिकथा ।
॥ २३८ ॥