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उपदेशमालाविशेषवृत्तौ
इह प्रवचने वन्दनापद्धतिः।
इय संबोहि वि माइ चडावइ, रहवरि हरि नयरिहि जा आवइ । ताव तासु तं पिक्खिवि विप्पहि, सिरु फुट्टउ सयखंडु दुरप्पहि ॥७८।। जायवचूडामणि जाणिउ सोमणिविप्प दट्ठ गयसाहुसिरु । तउ कालबलदिहिं डिडिमसद्दिहिं कड्ढाविओ नयरीहि निरु ॥७९॥ "उत्तम अनइ निसम्गि न ढुक्कहिं, मज्झिम अन्नि निवारिय थक्कहिं । अहमह अनउ निरंभइ राउलु, अन्नह होइ लोगु अइआउलु" ॥८॥ गयसुकुमालमहामुणि मारणि, उत्तमंगि चिय अग्गिहि जालणि । अच्छितु कोइ नेव जायवजणि, जो न जाउ अइदुक्खिउ तक्खणि ॥८॥ तिणि वेरन्गि लग्गि अइअम्गलि, विणु वसुदेवि एकि जस उजलि । नवदसारपव्वज्जपवजहिं, परिवारिय पाएण सभजहिं ॥८२।। सामि माइ सिवदेवि महासइ, सव्वविरइ संजमु उल्लासइ । सत्त पुत्त अवरिवि वसुदेवहि, तहिं अवसरि वरसंजमु सेवहिं ॥८॥ जउ कुमार दुव्वार विदिक्खिय, जिणसगासि जइ सिक्ख सुलक्खिय । कन्हि सकन्न सव्वि दिक्खाविय, नहु कयनियमि कावि परिणाविय ८४ इय गयसुकुमालिहि चरिउ अबालहि अइसाहसनिव्वाहवरु । जो पढइ भत्तिभरि गुणइ महूरसरि जाइ दूरितसुदुरियभरु ॥८५|| ॥ इति गजसुकुमालसन्धिः ॥ किमित्येष मुनिरेवं सोढवानित्याह
रायकुलेसुऽवि जाया, भीया जरमरणगब्भवसहीणं । साहू सहति सव्वं, नीयाणवि पेसपेसाणं ॥५६॥ पणमंति य पुव्वयर, कुलया न नर्मति अकुलया पुरिसा। पणओ पुदि इह जइजणस्स जह चक्वट्टिमुणी ॥ ५७ ॥ जह चकवट्टिसाहू, सामाइअसाहुणा निरुवयारं । भणिो न चेव कुविओ, पणओ बहुअत्तणगुणणं ॥५८॥ ते धना ते साह, तेसिं नमो जे अकज्जपडिविरया। धीरा वयमसिधारं, चरंति जह थूलभद्दमुणी ॥ ५९॥
'रायकुलेसु वि' गाहा ॥ स्पष्टा । नवरं “पेसपेसाणं" ति कर्मकरसत्ककर्मकराणामपि ॥ ५६ ॥ विनयं प्रतीत्योपदेशान्तरमाह-'पणमंति य' गाहा ॥ किल स्तोकपर्यायो यतिमहापर्यायं यतिं प्रथमं वन्दते, महापर्यायस्तमनुवन्दते इति स्थितिः। ततः
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