________________
क्षमायां गजसुकुमालकमुनिसन्धिः।
तसु गुणवंतह मुजातं जेव दिव्वना
करिवि इट्ट दूर
उपदेशमाला
जिंव जिंव सिरु दुजाइ सुजालइ, तिव तिव सुमुणि खमारसु ढालइ । जिव जिव सिंरु दहेइ वइसानरु, तिव तिव होइ कम्मुछारुक्कर ॥२॥
मणि मुणिवरु वरभावण भावइ, खणि खणि सुकझाणु संभावइ । एहु देहु जइ डज्झइ डज्झउ, मह जिउ कम्म कलंकिहि सुज्झउ ॥६३।। विशेषवृत्तौ
दढतिलजंतुप्पाइयपीलण, खंदगसीस सहावियवेयण । चरणचवेड देवि विद्दारिउ, वग्घि सुसाहु सुकोसलु मारिउ ॥६४॥ ॥ २३२॥ | महुरनरिदि दंडअणगारिहिं, सिरु छिन्नु तरवारि पहारिहिं । तहवि अप्पमत्तनियसत्तहिं, कहवि न चित्ते चुक सत्तत्तहिं ॥६५॥
जइवि तिव्वतणिवेयण ढुक्कइ, तहवि एउ मणि मज्झु खुडुक्कइ । ज किर एहु मह कारणि बंभणु, अहह होइ दुग्गइं दुक्खि धणु ॥६६॥ इय भावणजुत्तह तसु गुणवंतह मुणिहि देहचाएण सहु । केवल संजायउ मोक्खु वि आयउ सुर करंति निव्वाणमहु ॥६७|| अह उग्गउ पुव्वगिरिंदि भाणु, गयमुणिहिं तं जेव दिव्वनाणु । हरि हरिसउ देवइदेवि जुत्तु, संचलिउ भाय बंदणनिमित्तु ॥६॥ अंतरपहि पेक्खइ फट्टचिरु, अइचिरतरजरजजरसरीरु । सिरि करिवि इट्ट दूरह वहंतु, नियतायहेउ देउलु करंतु ॥६९।। सयमेव देवि साहेज्जु तासु, निप्पाइउ हरि तं सुहकलासु । जाइ वि नमेवि सिरिनेमिनाहु, पुच्छइ कहिं अच्छइ नवउ साहु ।।७।। पभणइ जिणिंदु गोविंद ! तेण परमप्पउ पाविउ खमगुणेण । वउलेवि देवि निसि काउसम्गु. स सहिंसु अग्गिउग्गोवसग्गु ॥७१। जह इय उविति तइ रायमम्गि, साहिज्जु दियह दिन्नउ निसग्गि । तह तासु सीसि जालंति जलणु, दिन्नउ दुजम्मि तं सिद्धिकरणु ॥७२।। पुच्छिउ दामोदरि बहुदुहनिब्भरि 'किं करि मई सो जाणिवउ । जंपइ जायवजिगु पई पिक्खेविगु जासु सीस फुडु फुट्टिवउ ॥७३।। परमेसरु पणमेवि जणद्दगु, पिउवणि पत्तउ कयअकंदणु । गयसुकुमालकाउ गयजीविउ, पेक्खइ पुह विहि पडिउ पलीविउ ॥७४।। ण्हाणविलेवणपूय पयावइ, तसु सयमेव ससोगु करावइ । अगरगंधसारिहि सकारइ, जणणि मुकपोकार निवारइ ॥७५।।
सोगावेगु माइ ! मा किजउ, परपरमत्थु महत्थु मुणिजउ । धन्नु पुन्नु वन्नियइ सया मुणि, अमरिहि गयसुकुमालु महामुणि ॥७६।। N! जसु निमित्तु तबु तिब्बु तविज्जइ निरसु नीर निरन्नह पिज्जइ । पुव्वकोडिसंजमि पाविजइ, जं सिवसुहु तं पत्तु महाजइ ।।७७।।
१ किर किव B किव किर C. D। २ नोहसु नौह निरत्तहं DI
पछइ कहिं अच्छ
CamerekaeeCeevREKPearera
॥२३२॥