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उपदेशमालाविशेषवृत्तौ
॥ २३१ ॥
घरदुवारसोहहिं सुविलासहिं, उब्भियतोरणवंदुरवालहिं ।
वरनवरंगरत्तघट्टसुय, विसहिं सुवासिणि अक्खवत्तजय ||४७|| ठाठावि सुयं माझ्य गिज्जहिं, चट्टहिं चोट्टहिं चोप्पड दिज्जहिं । पाउल मंगल राउलि वचहिं, फिरि फिरि वारविलासिणि नचाहिं ॥४८॥ घराडंबर अइसयसुंदरि वित्त वद्धावणयरसु । अह् सुमिणायत्त नामु निरुत्तर दिन गयसुकुमाल तसु ॥ ४९|| सुरगिरि सिरगि जिव कप्परुक्खु, तिव वट्टर बालु विसालसुक्खु । खेल्लावइ देवइ खेल्लणेहिं, बोल्लावइ लल्लुरवयणुलेहिं ॥५०॥ परिसिलिय अविकलकलकलाउ, 'संपत्त पुन्नतारुन्नभाउ । परिणेइ कुमरु अइसय सुरूय, उमा उवरोहि दुमयरायधूय ॥ ५१|| अणुरूवु पभावइ तासु नामु, नियहत्थि भल्लि जा करइ कामु । तह सोमसम्मदियअंगजाय, सोमाभिहाण विहिया राय ॥ ५२ ॥ खत्तियकलत्त संभवसुवन्न, परिणीय तेण अवरावि कन्न । अह तंमि चेव समर्थमि, विहरंतु पत्तु पुरनगरगामि ॥५३॥ ठिउरिनेमि सेवि सुरेसि, बारवइ नयरि रेवयपएसि । सकलत्तु पत्त वंदणहं रिसि, सुकुमालकुमरुनिस्सम सुहेसि ||५४ || देसण निसु विणु चित्ति धरेविणु संसारहि सुविरत्तमणु । घरवासु विसज्जइ दिक्ख पवज्जइ जिगह पासि परिचर || ५५|| पव्वज्जपव्वज्जहिं दोवि भज्ज, सह सोमपभावइ भुयअवज्ज । सुकुमालसाहु अइचंगअंगु, जाणियइ जाउ किर मुणि अणं ॥ ५६ ॥ विन्नयइ नमेविणु नेमिनाहु, जोडियकरग्गु सुकुमालसाहु । जइ उवदिसहु 'सहिओ वसणु, निसि करउं मसाणि श्त काउगु ॥५७॥ अाणि यणि गड मसाणि, उस्सग्गु करिवि ठिउ मोणझाणि । न चलेइ सुरेहिं वि सुद्धभाउ, सुरसेलु जेव निकंपकाउ ॥५८॥ अह कवि दुजाइसु सोमसम्मु, तहिं ठावि पहुत्तउ क्रूरकम्मु । अवलोइवि गयसुकुमालसाहु, चिंतेइ तिब्बकोवग्गिदाहु ॥ ५९|| परिणिवि अणेण महधूय धुत्ति, पासंडु लियाविय रम्ममुति । तसु तणीवट्ट हाहा हयासि लहु लइय विडंबिय सुगुणरासि ॥६०॥ ता एहु सलीहइ अवसरि ईहइ वइरिउ साहउं अप्पणउ । इय सीसि चियानल जालइ अग्गलु कूरकम्मु सो निग्घिणउ ॥ ६१ ॥ ४ निय इत्थमहिगा B.
१ संपन्न B. संपुन C D २ सरूव D ३ मा उवरोहि दुमार वधूय C. D. मा उवरोहुम B इत्थभलिजा D । ५ सुणेरिसि B. सुरे D । ६ सहिओ वसणु D सहि उवसग्गु B. । ७तु BC |
क्षमायां
गजसुकुमालमुनिसन्धिः ।
॥ २३९ ॥