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उपदेशमालाविशेषवृत्तौ
॥२३०॥
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सत्तहिं इय पुत्तेहिं जुत्ता हरिभूवइ मुंजइ भारहाण
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जिणदंसिय बंदइ तेसु साहु, उररुहिहिं झरतिहिं पयपवाहु ।
क्षमायां अह सा ते वंदइ मुणि अभिणदइ धन्न पुन्न जगि तुम्हि पर । अरु मज्झ विसारी बहुगुणधारि कुक्खिसलक्खण पुत्तधर ॥३१॥ जं मोक्खसोक्खसाहणसमत्थु, छहिं सजिउ संजमु सुप्पसत्थु । हरिभूवइ भुंजइ भारहध्धु, जस तोसियगणगंधव्वसिद्ध ॥३२॥
IN गजसुकुमाल
मुनिसन्धिः । हउं जगि कयत्थ एक जि निरुत्त, जं सत्तहिं इय पुत्तेहिं जुत्त । नियगिहपहुत्त झुरंत होइ, जं पालिउ नहु नियबालु कोइ ॥३३॥ करयलनिहित्तनिम्मलकवोल, अइतरलसरलनीसासलोल, दुलहुलुदु(घु)लंतनयणंसुधार, हरिदिदुदेवि सोयंधयार ॥३४॥ तिण पुच्छिय पणमिवि चित्तदुक्खु, किं कुणसि माइ एत्ति असुक्खु । तुह लंघिय केणइ किंतु आण, कुवि सिठ्ठ मणिं न मणोरहाण ॥३५॥ महदेव अंब! आएसु देहि, तिहुअणि वि इछु किं तुह कहेहि । आणेमि अंब ! अविलंबमेव, नियजणणि फेडउं दुक्खु जेव ॥३६।। अह भुवणमहासइ देवइ भासइ, अवरु दुक्खलेसो वि न हु । जं पुण नो पालिउ एक्कु वि लालिउ ससिसु खुडुक्कइ तं जि मुहु ॥३७।। तुहुँ पालिउ ताव जसोय वच्छ ! अवरेवि पढमसुलसाए सच्छ । अह हरिय तुम्हि सत्तवि सुबाल, भुक्खियहं जेव वरखीरिथाल ॥३८॥ अइधन्नपुन्न ता चेव नारि, अरु साव सलक्खण-सोक्खकारि । सयमेव जाहिं पउ पज्झरंतु, नियअंकि बालु पालिउ पियंतु ॥३९।। हरि-हरिणि-गावि-वानरि वि धन्न, नियबालु जि पेक्खहिं सुप्पसन्न । हउँ दइवि सदूमिय दुक्खभूरि, कियकोइल जिंब नियडिंभ दूरि ॥४०॥ ता तह करेसु सारंगपाणि!, जह पालउँ बालु सलोलबाणि । ओमित्ति भणेविणु बंभयारि, एगंति निसन्नउ दाणवाऽरि ॥४१॥ पत्थरि वि दब्भसत्थरउ सुटु, अटुमतवेण उवविठु बिछ । मणि धरिवि पुव्वसंगइउ देउ, आकंपइ आवइ भणइ एउ ॥४२॥ कहि केण निमित्तिण कन्ह ! पयत्तिणपई हां सुमरिउ रत्तिदिणु । अह कन्हि वि वासिउ कज्ज पयासिउ देवइ देवउ पुत्तरिणु ॥४३॥ भणइ देउ हरि! होसइ बालउ, देवइदेविहि सव्वगुणालउ । पुणु जोव्वणभरि नेमिजिणेसहं, पासि दिक्ख लेसइ सियलेसह ॥४४॥
IST॥ २३०॥ इय भणेवि सुरु गउ सुरवासह, हरि वि पत्तु निय रज विलासह । अवसरि सुविणं देवइ देक्खइ, मुहि मयगलु पविसंतउ लक्खइ ॥४५॥ समइ बालु सुकुमालु सुलक्खणु, देवइदेविहिं जाउ वियक्खणु । वद्धावणउं काराविउ केसवि, निय अणुजायभाय जम्मूसवि ।।४।।
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